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वख्तसिंहजी से लेके विजयसिंहजी तक चण्डवाणी जोशियोंको भीमसिंह के समय नाथावत व्यासों को, मानसिंहजी के समय पुरोहित, छाँगाणी, चण्डवाणी जोशी
और नाथावत व्यासों को, तख्तसिंहजीके समय पुरोहित, नाथावत व्यास, और चण्डवाणी जोशियों को, और
यशवन्तसिंहजी से वर्तमान महाराजा सर्दारसिंहजी साहिबों के समय में चण्डवानी जोशियों को इस समय इस पदपर चण्डवाणी जोशी भैरूंदासजी नियत हैं और जोधपुर दरबारके गुरु होने से व्यासजी कहलाते हैं। .. जोधपुर का नगर वसानेवाले राठौड़ राव जोधाजी के पुत्र 'बीकोजी' ने अपने नांवपर बीकानेरका नगर वसाके अपनी राजधानी स्थापित की तो उनही के यहां भी पुष्करणे ही ब्राह्मण गुरु भावसे पूजे गये थे। वे प्रारम्भ में तो व्यास जातिवाले थे किन्तु सं० १६७० में आचार्य जातिके पुष्करणे ब्राह्मण 'वेणीदास. जी' के कथनानुसार बीकानेर का राज्य सूरसिंहजी को मिलाथा तभीसे वेणीदासनी की सन्तान इस पद पर रहती आई है।व. तमान बीकानेर के महाराज गङ्गासिंहजी साहबों के समय में इस पद पर आचार्य गेरमलजी आदि हैं और राज्य के देरासरी होनेसे देरासरी जी कहलाते हैं।
जोधपुर के महाराजा उदयसिंहनी के पुत्र 'कृष्णसिंहजी' ने अपने नामपर कृष्णगढ़ का राज्य स्थापित किया तो वहांपर "भी पुष्करणे ही ब्राह्मणों का गुरु भावसे सत्कार होता आया है।
इसी प्रकार ईडर, रतलाम, झाबुवा, अमजरा. सीतामाऊ भादि राजा महाराजा राठौड़ वंश के होने से अपने पूर्वजों के
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