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भाटिये महाजनों को पुरोहिताईभाटी राजपूतोंमें से महाजन भाटियों की एक पृथक् जाति सं० १२२६ में मुलतान में बनी है। वह भी यदुवंशी होने से अपनी कुल परम्परा के कुल गुरु पुष्करणे ब्राह्मणों को गुरु भावसे पूज्य मान के सदा सत्कार करते हैं।
इन महाजन भाटियों की पृथक् जाति बनने का संक्षिप्त इतिहास यों है:
भाटी राजपूतों का पहिले बहुत बड़ा राज्य था। अत:जैसलमेर के इलाके में भी ये बहुत वसते थे । परन्तु शत्रुओं के उपद्रव से २००० । २५०० भाटी अपना देश छोड़ के सिन्ध तथा पञ्जाव की ओर चले गये। उस समय इनके पुरोहित (कुलगुरु) पुष्करणे ब्राह्मण भी इनके साथ २ गये थे। फिर इन भाटी राजपूतोंने वहां जाके क्षत्रिय धर्म को त्याग के वैश्य धर्म (व्यापार) धारण कर लिया। इस लिये अन्य राजपूतों ने इनके साथ विवाह आदि सम्बन्ध तोड़ दिया। जिससे इनके बेटे बेटी कुँवारे ही बहुत बड़े २ हो गये थे। उनके विवाह की चिन्ता लग जानेसे इन सब भाटियों ने मुलतान में जाके ब्राह्मणों की एक सभा एकत्र करके उनसे व्यवस्था माँगी जिमका सम्पूर्ण वृत्तान्त अजाची भाट 'जसा' कृत भाटियों की 'कुल कथा' नामक ग्रन्थ में छन्दोबद्ध लिखा है। उसमें से थोड़े से छन्द यहां लिखताहूं:बारेसै छब्बोस. में मिले जाय इकठोर । कोन्हों बिचार अब कहा करें,कछु माहे में जोर ॥ ज्ञाति सब चिन्ता करे, अब करें कौन उपाय।
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