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स्था अर्थात् सं० ८९८ में, बारह जाति के राजपूतों के पुरोहित पुष्करणे ब्राह्मण देवायतीने शत्रुओं से बचाया था जिसका ससविस्तर वृत्तान्त पुष्करणे ब्राह्मणों को प्राचीनताके प्रमाण सं० ८९८ में लिखा चुका है । अत: पुष्करणे ब्राह्मण तो पड़िहार राना शिलुकसे भी पहिले ही से मारवाड़ में विद्यमान थे ।
पड़िहारराजा बाहुकके उक्त संस्कृत शिला लेख में लिखाहे कि:तस्मा नरभ टाजाः श्रीमान्नागभटः सुतः। राजधानी स्थिरा यस्य महन्मेडन्तकं परं ॥१२॥ राज्ञां श्रीजजिका देव्यास्ततो जाती महागुणौ। द्वौ सुतौ तातभोजाख्यौ सौदर्यो रिपुमर्दनौ॥१३॥ तातेन तेन लोकस्य विद्युचंचल जीवितं । बुध्वा राज्यं लघो. तुः श्रीभोजाय समर्पितं॥१४॥ स्वयञ्च संस्थितस्तातः शुद्ध धर्मासमाचरन् । माण्ड व्यस्याश्रमे पुण्ये नदी निर्झर शोभते ॥ १५॥ ____अर्थात् नरभट के पुत्र नागभटके, कि जिसकी राजधानी मेड़तेमें थी, जज्जिका नाम रानीसे तात और भोज नाम के २ पुत्र हुये । उनमें से तातने तो मनुष्यका जीवन बिजली के समान चञ्चल समझ के राज्य छोड़ के अपने छोटे भाई को दे दिया। और आप संसारको सांगके माण्डव्य ऋषिके आश्रम में शुद्ध धर्मका आचरण करने लगा।
परन्तु इसी बाहुक के भाई कक्कुकके मागधी गाथाके एक शिला लेखमें नरभटको 'णारहड' और उप्त के पुत्र नागभट को 'णाह' लिखा है । इसी 'गाइड' का अपभ्रंश नाहरराव समझ
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