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४९.
पुष्करिणीकारिता येन त्रेतातीर्थे च पत्तनं ॥ सिद्धेश्वरो महादेवः कारितस्तुंग मंदिरः ॥२०॥ ____ अर्थात् उस चन्दुक पड़िहार के शिलुक नाम एक अद्वितीय पराक्रमी अजेता, पुत्र हुआ। जिसने स्त्रवणी और बल्ल देश की सीमा स्थापित की और वल्लमण्डल के राजा भाटी देवरान को युद्ध में जीतके छत्रादि चिह्न पाये । और त्रेता तीर्थ पर पुकरणी (चौकोना तालाब ) बनाके ऊँचे मन्दिर में सिद्धेश्वर महादेवजी की प्रतिष्ठा कराई।
परन्तु जब कि यह बात सर्वत्र ही प्रसिद्ध है, और प्रमाण भी मिलते हैं, कि पुष्करजी को मण्डोरके राजा नाहरराव पड़िहारने खुदवाया था तो फिर राजा शिलुक का पुष्कर खुदवाना क्यों कर सिद्ध हो सकता है ? कभी नहीं । परन्तु यह अनुमान उन्होंने उक्त शिलालेख में केवल 'पुष्करणी' शब्द देख ही के कर लिया है। किन्तु यह उनका भ्रम है क्योंकि पुष्करणी शब्द पुष्कर का वाचक नहीं है वरन एक छोटी तलाई का द्योतक है । इसके अतिरिक्त उक्त शिलालेखमें पुष्करणी; पर सिद्धेश्वर महादेव का मन्दिर स्थापित करना भी तो लिखा है किन्तु पु. कर पर इस नामका कोई मन्दिर है ही नहीं। अत: पुष्कर खुदवानेवाला शिलुक नहीं है । फिर भी यदि यह मान भी लें कि पुष्करजी को पड़िहार राजा शिलुक नेही खुदवाया था तो भी पुष्करणों के लिये कुछ हानी नहीं। क्योकि इसी शिलालेख में राजा शिलुक को भाटी राजा देवराज के साथ युद्ध करना लिखा है और यह युद्ध सं० ९१५ के पीछे हुआ है। परन्तु राजा शिलुक से लड़ने वाले भाटी राजा देवराजको, बाल्याव
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