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हुये, परन्तु वे ( फिर भी पहिले की तरह ) पराजित हुये और भगा दिये गये । यह जान कर, कि हम खुल्लम खुल्ला लड़ाई क. रने में ( भाटियों से) नहीं जीत सकते, उन्होंने (एक) छलरचा । ( परस्पर को) कई वर्षों की लम्बो लड़ाई का अन्त करने के बहाने से उन्होंने (भठिण्ड के ) बाराह (जाति के ) राजाको पुत्री व्याहने के लिये कुँवर देवराजको निमन्त्रण दिया (विवाह का लग्न भेजकर जान भठिण्डे बुलाई)। भाटी उपस्थित हुये जब कि विजयराज और उनके ८०० भाई बेटे मार दिये गये । देवराज पुरोहित के घर में भाग गये (छिप गये ) [उस पुरोहित को लोग बाराहों का पुरोहित समझते हैं ] वहां भी उनका पीछा किया गया । उस ब्राह्मणने ( देवराज के ) वचनेकी कोई आशा न देख के उस राज कुमार के गले में जनेऊ डाल दी
और उस के साथ एक थाली में भोजन करने को बैठ गया । जिससे कि उनका पीछा करने वालों को यह विश्वास हो जावे कि जिस पुरुष को हम ढूँढने को आये हैं उस में हमको धोखा हुआ है (अर्थात् यह तो देवराज नहीं है, किन्तु इसी ब्राह्मणका लड़का है तभी तो एक थाली में भोजन करते हैं, ऐसा समझ कर देवराज को जीता छोड़के पीछे लौट गये । )" (टाड राज स्थान भाग २ जैसलमेर के इतिहास का अध्याय २)
इसी प्रकार पुष्करणे ब्राह्मण पुरोहित देवायतजी और उन के रत्न नामक पुत्रने भाटी देवराज के प्राण शत्रुओं से बचाये थे, जिसका पूर्ण वृत्तान्त जैसलमेरकी तवारीख के पृष्ठ १८ में लिखा है। उस का अभिप्राय यों है:
पँवारों, झालों, वाराहो आदि ने मिलकर तणोट नगर के भाटी राजा तराइजी व उनके युवराज कुँवर विजयराज से कई
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