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फिर वे १६ गोत्र के ब्राह्मण अपनी जाति अलग बनाके ओमवालों की विरत और उनके मन्दिरोंकी सेवा करने लगे जिससे फिर सेवग कहलाये।
कितनेक लोग कहते हैं कि जैनी भोसवालों कीजाति सं० ८०० के लगभग बनी है । किन्तु ऐसे तो सं० ८०० ही क्यों सं० १५०० के लगभग तक ओसवालोंकी जाति बनती रही है, अर्थात् दूसरी जाति के लोग इनमें मिलते चले आये हैं। परन्तु इस जातिका प्रारम्भ तो पँवार राजपूतों से सं० २२२ ही में हो गया है. जिसके प्रमाणका एक दोहा ओसवालोंके इतिहासमें से यहाँ लिखता हूं:संवत् दोय बावीस के ओसवाल क्षत्री हुआ । चवदैलो चवालीस नख सकल कहु जुआ जुआ॥
यद्यपि यह दोहा ओसवालों की जाति बन चुकने पर बना है परन्तु इसके बनानेवालेने भी ओसवालों की जाति बनने का प्रारम्भ होना तो सं० २२२ ही में माना है। अतः सेवगों की जातिभी सं० २२२ हीमें बनी है उसी समय ४ गौत्रके पुष्करणे ब्राह्मण भी उस जातिमें शामिल हुये थे। - यही बात स्वयं सेवगोंने भी अपनी उत्सत्ति के इतिहास में लिखाई है। (देखो रिपोर्ट मम शुमारी, राज्य मारवाड़, सन् १८९१ ई०, के भाग तीसरे के पृष्ठ ३२१ में सेवगोंकी उत्पत्ति ।
सं० २१३ में बोधा जातिके पुष्करणे ब्राह्मण पुरोहित हरवंशनी जिनके वंशवाले भाटी राना देवराजको बचाने के स. मय पे भाटियों के पुरोहित हुये हैं, अपनी कुलदेवी 'डेहरूमाता' को सिन्ध से अपने साथ मारवाड़ में लाये थे ( उस समय मार
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