________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ફર
लुवा नगरके पँवारोंका राज्य सं ९१५ में नष्ट हो गया अर्थात् भाटी राजा देवराजने छीन लिया था तब से इस देश मे देवराज की सन्तान जैसलमेर के भाटी महाराजाओं का राज्य है जिसे आज १०५१ वर्ष हो गये किन्तु पँवारोंके दिये हुये गाँवको भाटी राजाभी वैसा ही साँसन मानते आये हैं जैसा कि पँवारोंने माना था | अतः यह 'काहला ' ग्राम आज तक गजा जाति के पुष्करणे ब्राह्मणों की स्वाधीनतामें चला आता है जिसे मिले आज १४३५ वर्ष व्यतीत हो गये हैं । (देखो जैसलमेर की तवारीख के पृष्ठ १३६ वें में परगने जैसलमेर के गाँव नम्बर ५२ वें की कै फ़ियता)
सं० २२२ में जैनाचार्य रत्नप्रभुसूरि ने पारवाड़ में ओसियां नगर के १८ खांपके पँवार राजपूतोंको जैनी बनायेथे जिस का सम्पूर्ण वृत्तान्त ओसवालोंके इतिहासमें विस्तारसे लिखा है । उसका सारांश यह है कि वहां के राजाकी वृद्धावस्थामें उन का एक लौता पुत्र सर्प के काटने से मर गया था । उसको रत्नप्रभुसूरिने इस प्रण पर निर्विष करके पीछा जिला दिया था कि वे सब लोग जैन धर्मको धारण करें । इस लिये वे पंवार राजपूत जैनी हो गये । जैनी हो जानेपर पँवारोंने अपने पुरोहितों को कहा कि "तुम हमारी विरत रखना चाहते हो तो हमारे घर का अन्न जल को और हमारे जैन मन्दिरों की सेवा करो" | वब ६ गोत्र के तो गूजर गोड़, ६ गोत्र के खण्डेलवाल और ४ गोत्रके पुष्क रणे कुल १६ गोत्रके ब्राह्मणोंने विरत के लोग उनके घर में भोजन किया जिससे भोजक कहलाये जिसके ममाण की यह एक कहावत परम्परा से चली आती है कि:
variघर प्रोहिताँ । ओसवालाघर भोजकाँ ॥
For Private And Personal Use Only