________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४१
जाति के पुष्करणे ब्राह्मण थे । उन के वन्य से विवाह की शोभा अधिक हुई। इससे भाटी राजा मूलराजभी बहुत प्रसन्न हुये । सातलमेर के कुंवर राजाओंने अपने पुरोहितों को 'बाँ ना' नामक एक गाँव (जो पोकरण से दक्षिण की ओर एक कोश की दूरी पर है ) दत्त दियाथा सो वह गांव आज तक छांगांणी जाति के पुष्करणे ब्राह्मणों की अधीनता में चला आता है ।
सं० ५७५ में लुवा नगर में लुद्र (कल्ला ) जाति के पुष्करणे ब्राह्मण हरवंशजीने सहसभोज ( अशेषभोज ) नामक विष्णु यज्ञ किया था । उस समय अपनी जातिके सम्पूर्ण ब्राह्म
को दूर २ से बुलाके एकत्र किये और ७ दिनतक भोजन कराके प्रत्येक ब्राह्मणों को २) २) रुपये दक्षिणा देके विदा कियें। उस उत्सवमें पुष्करणे ब्राह्मणों के भाट जैतराज को कड़े, कण्ठी, मोती आदि शिरोपाव के अतिरिक्त ५००) रुपये रोकड़ दिये थे । इस यज्ञ का वृत्तान्त भाटों की बहियों में तथा कल्लों के इतिहास में विस्तार से लिखा है ।
सं० ५३१ में लाहौर के भाटी राजा 'गजूराव' लाहौ रका राज्य अपने पुत्र 'लोमनराव' को दे के आप गजनी (खुरासान ) की गद्दी पर जा बैठे । लोमनराव का विवाह लुद्रवा नगरके पँवार राजा 'वीरसिंह' की कन्यासे हुआ । उस समय वीरसिंहने अपने वंश परम्परा के पुरोहित आचारज ( आचार्य जाति के पुष्करणे ब्राह्मणों को 'काला' नामक एक गाँव (जो जैसलमेर से पश्चिम की ओर ५ कोश की दूरी पर है ) दत्त देके ताम्र पत्र कर दिया था । पीछे से आचारजोंने वह गाँव अपने सवासने गजा जाति के पुष्करणे ब्राह्मणों को सङ्कल्प कर दिया।
For Private And Personal Use Only