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में 'मारवाड़के संक्षिप्त इतिहास' में पृष्ठ १९ वें की पंक्ति ११२ में लिखा है कि "पड़िहार राजपूतों की उत्पत्ति विक्रमी संवत् को आठवीं शताब्दि में पाई जाती हैं"।
जब कि मण्टोर के पड़िहार राजपूतों को उत्पत्तिही आठवीं शताब्दिमें हुई है तो फिर उनके वंशमें से कई पोढ़ी पोछे होने वाले नाहरराव पड़िहार सं० ७४४ ही में कैसें पुष्कर को खुददा सकते थे?
इसके अतिरिक्त सं० ७४४ में मण्डोर में राज्य ही पड़िहारों का नहीं था किन्तु पँवारों का था । पँवारों के इतिहास में यह बात प्रसिद्ध है कि पँवारों में 'धरणी वाराह पँवार' मारवाड़ का बड़ा नामी राजा हुआ, जिसने अपने राज्यके ९ कोट अपने भाइयों को बाँट दिये थे। तभी से मारवाड 'नवकोटी' कहलाती है उसकी तफ़सील रिपोर्ट मर्दुम शुमारी राज्य मारवाड़ बावत सन् १८९१ ई० के तीसरे भागके पृष्ठ १० । ११ वे में यों लिखी है:मण्डोवर सावत हुओ, अजमेर सिन्ध स । गढ़ पूँगल भज मल हुआ, लुवै भान भू ॥ आल पाल अर्बुद, भोज राज जालन्धर (जालोर)। जोग राज घर धाट, हुयो हंसू पारकर ॥ नव कोट किराडू संजुगत, श्रिर पँवारां थरपिया। धरणी वराह धर भाइयाँ, कोट बाँट जुआ जुआ किया। ___ यह बँटवाडा (विभाग) सं० ५७६ से पहिले हो चुका था। जिसका प्रमाण यह है कि जिस सावत पंवार के भागमें मण्डोर आया था उस मण्डारे के राजा सावत्र पँवार को पुत्री का विवाह
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