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वाड़में यादवों का राज्यथा ।) फिर जहां पर डेरा कियाथा वहां माताको आज्ञासे उसी माताके नामपर 'डेहरू' गाँव वमाया जो कि जोधपुर से ईशानकोण की ओर परगने नागोर में विद्यमान है; और पुरोहित जातिके समस्त पुष्करणे ब्राह्मण तभीसे अपनी उस कुलदेवी की मानता करने को वहीं पर जाते हैं।
सं० २०९ में पुष्करणे ब्राह्मण लुद्र ब्रह्मदत्तनीने विद्या के बलसे शुक्रजी की आराधना करके उन्हें प्रत्यक्ष बुलाये थे । उस समय शुक्रजी से शुक्र का तारा अस्त होने के समय शुभ कार्य करने में तारेका दोष न लगने का वर मिला था । तबसे लुद्रं जातिके समस्त पुष्करणे ब्राह्मण (जो पोछे से कल्ला कहलाये) तारे के अस्त होने का दोष नहीं मानते हैं । इसी लिये लोग कहते आये हैं कि कल्लोंने तारा उतारा था । (देखो रिपोर्ट मर्दुम शुमारी राज्य मारवाड़ का पृष्ट १८६ वाँ।)
पुष्करणे ब्राह्मणो की प्राचीनता के इतने प्रमाण लिखे गये वे विक्रम संवत् के आधार पर लिखे गये हैं परन्तु इस से पूर्व विक्रम संवत् प्रारम्भ ही नहीं हुआथा इस लिये इस से पहिले के प्रमाण संवत्के आधार परतो नहीं किन्तु पीढ़ियों के आधार पर तो विक्रम संवत् के भी सैकड़ों ही वर्ष पहिले के और भी कई लिख सकता हूं। पर जब कि इतने प्रमाणों से भी यह बात ता स्पष्ट हो गई कि पुष्करका तालाब तो सं० १२१२ में स्तुदा है और पुष्करणे ब्राह्मण सं० २०९ में भी विद्यमान थे। जिससे पुष्कर खुदने के समयसे १००० वर्ष पहिले तक को तो पुष्करणे ब्राह्मणों को विद्यमानता इन प्रमाणोंही से सिद्ध हो गई तोफिर अब अधिक प्रमाण लिखना गोया पाठकों के अमूल्य समय को वृथा नष्ट करना है। अतः ऐसे प्रमाणों को तो अब मैं यहीं पर
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