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जन न करने से देवराज मार डाला जावेगा। अतः उन्होंने उस समय बड़ी बुद्धिमानी से काम लिया और कामसे खोटी हो जाने आदि का बहाना करके सब एक साथ नजीमके दो दो जनों को भेले जिमा दिये । जिनमें भाटी देवराज के साथ अपने बेटे रत्नू को जिमा दिया । यह देखके पँवारों, झालों, वाराहों की सेना आगे चली गई और भाटियों की राजधानी तणोठ को बरबाद कर दी।
जिन लोगोंने विश्वास घात करके १३०० मनुष्य मार डाले उन के लिये ६ मनुष्यों को मार डालना क्या कोई बड़ी बात थी ? नहीं परन्तु शत्रुओ की सेनामे जो वाराह जाति के राज पुत्र थे उनकी पुरोहिताइ ( कुलगुरु पन) कई पीढ़ियों से इन्हीं देवायतजी के कुलमें चली आती थी इसी लिये इन को अपना पुरोहित जान के जीते छोड़ दिये वरना सबको मार डालने ।
फिर पुरोहित देवायतजी व उनके बेटे रत्नू के प्रयत्न व सहायतासे भाटी देवराजने अपना राज्य पीछा स्थापित करके सं० ९०९ माघ सुदि ५ सोमवार को अपने नाम पर 'देरावळ' का किला बनाया जिस के प्रमाण का यह एक दोहा है:
संवत् नवनवोनरै दीवी देरावल नींव । भुट्टाँ, रोहिल, भाटियाँ. सबलां घाली सीव ॥
उस समय भाटी देवराजने अपना प्राण बचाने वालो का बड़ा उपकार मान के पुरोहित देवायतजी को तो अपना पुरोहित (कुलगुरु) बनाया और रत्न को, जो उन के साथ भोजन कर लेने से पुष्करणे ब्राह्मणों की जाति से अलग कर दिया
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