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स्वयं देवायतजीने ही अपने पुत्र रतन को जातिसे बाहर कर दिया। तभी तो उसे चारणों की जाति में मिला देने की राजा को आवश्यकता पड़ी थी।
जब कि पुष्करजी का इतिहास लिखते समय टाड साहबने राजस्थान के भाग १ अध्याय २९ वें में पुष्करजी को प्रारम्भ में तो ब्रह्माजी का उत्पन्न किया हुआ और ब्रह्माजी के पोछे मण्डोर के अन्तिम पड़िहार राजा नाहरराव का खुदवाया हुआ होना और नाहरराव पड़िहार का विद्यमान होना विक्रम संवत् १२०६ में भाग १ के अध्याय ४, ५, ७ और २६ वें मेंमाना है, तो टाट राजस्थान के लेखानुसारभी पुष्करजी का तालाब सं० १२००, के लगभग खुदा है, अतः टाड राजस्थानकी पूर्वोक्त 'अजब कहानी, के अनुसार पुष्करणे ब्राह्मणों की उत्पत्ति भी तो तभी से होनी चाहिये । किन्तु उसी टाड राजस्थान के भाग २ के जैसलमेर के इतिहास के अध्याय २ में वर्तमान जैसलमेर के महाराजाओं के पूर्वज भाटी राजा विजयराज के पुत्र देवराजको सं० ८९८ में भठिण्डे के वाराह जाति के राजाओं के वंश परम्परा के पुरोहित (कुलगुरु) ने अपना भाई कह कर अपने साथ एकही थाली में जिमा के शत्रुओं से प्राण बचाना लिखा है । भाटी देवराज के साथ भोजन करने वाला वह पुष्करणाब्राह्मण पुरोहित देवायतजी का पुत्र रत्नू था इस बात को जैसलमेर की तवारीख व रिपोर्ट मर्दुम शुमारी राज्य मारवाड़ भी स्वीकार करती है । इतनाही नहीं किन्तु भाटी राजा देवराज के साथ भोजन करने वाले रत्नू को पुष्करणे ब्राह्मणों ने अपनी जाति में नहीं रखा; तब भाटी राजा देवराजने उसको अपना पोळपाट बारहट बना के चारणों की जाति में मिला दिया था। उसकी
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