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वार युद्ध किये । परन्तु कभी भी जय प्राप्त नहीं हुई । तब भाटियों का राज्य धोखेसे छीन लेनेके विचार से परस्पर का वैर मिटाकर सन्धि कर लेने का बहाना करके भठिण्डे के बाराह जाति के राजाने विजयराज के पुत्र भँवर देवराज को अपनी कन्या व्याह देनेका लग्न भेजा । भाटी भी इनके छल को न समझकर जान भठिण्डे ले गये। वहां चूक हुआ और १३०० लोको सहित विजयराज मारे गये । भाटियों की इष्ट देवी श्री स्वांगियाजी की आज्ञासे देवराज को 'नेग' नामका एक राईका अपनी ऊँटनी पर बैठाके ले भागा । किन्तु पीछे से शत्रुओं की सेना अती देखके देवराज की रक्षा करने में अपने को अब असमर्थ समझ के एक खेत में पुष्करणे ब्राह्मण पुरोहित देवायत - जीको पिछला वृत्तान्त कह के देवराज को एक खेजड़ी वृक्ष की शाखा पकड़वा के चलती ही हुई ऊँटनी परसे उतार के सौंप गया । देवायतजीने उसको तुरन्त जनेऊ पहिना के खेति में नैदान करने को खड़ा कर दिया । इतने में पीछे से देवराज को पकड़ने वाली सेना आई । उस में एक ऐसा चतुर पागो ( खोज - पैरों के चिह्न - पहिचानने वाला ) था कि भूमि पर ऊँटनी के पि छले पैरो के चिह्न देखने ही से कह दिया कि यहां तक तो ऊँटनी पर सवार दो थे परन्तु यहां से आगे अब ऊँटनी पर सवार केवल एक ही रह गया है; अतः अपना चौर, भाटी देवराज, इन्हीं खेतवालों में है । तब पीछा करनेवालोंने पुष्करणे ब्राह्मण पुरोहित देवायतजी को कहा कि हमारा चौर भाटी देवराज तुम्हारे यहां हो है सो हमको दे दो, नहीं तो तुम सब को मार डालेंगे | परन्तु देवायतजीने कहा कि यहां कोई चौर नहीं है । ५ तो मेरे बेटे और छठा मैं हूं । इतने में अचानक देवायतजी के
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