________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
इन्हीं पदमसीजी से कई पीढ़ी पहिले लुद्र आयस्थानजी बड़े प्रतापी हुये थे । उन्होंने सिन्ध देश में अपने नामपर 'आशनीकोट' नामक एक गाँव बसाया था । यह बात कल्लों के इतिहास से प्रकट ही है।
सं ९९६ में वैशाख सुदि ३ को लुवा नगर में पुष्करणे ब्राह्मण ढङ्कशाली व्यास लल्लूजी ने 'लक्ष (लख) भोज' नाम एक बड़ा भारी महा विष्णु यज्ञ किया था। उस समय पुष्करणे ब्राह्मणों की समस्त जाति को दूर २ से बुला के कई दिनों तक इच्छा भोजन कराया । फिर विदा के समय प्रत्येक को थाली, लोटा, कटोरा आदि पात्र तथा घोती, दुपट्टा, पगड़ी आदि वस्त्र और एक एक सुवर्ण मुद्रा ( सोने की मोहर) दक्षिणा दे के बड़ा सत्कार किया; उस समय पुष्करणे ब्राह्मणों के भाट तेजराज को लाख पसाव में रोकड़ रु. ५०००) तथा कड़े, कण्ठी, मोती आदि शिरोपाव दिये थे । इस समय की अपेक्षा उस समय धान्य घृतादि सम्पूर्ण वस्तुएं बहुत ही सस्ते भाव से मिलती थीं, तब भी इस कार्य में कई लाख रुपये लग गये थे । ऐसा महा यज्ञ पुधकरणे ब्राह्मणों में आजतक फिर नहीं हुआ है । (देखो जैसकमेर की तारीख़ के पृष्ठ २३२ वें की पंक्ति १७ वीं । ) 'लल्लू लक्ष समापिया हीवर दोना दान | कवियां घर काछी किया डंकर भरता डान ॥'
सं० ९९२ में वैशाख सुदि ९ के दिन उपरोक्त पुष्करणे ब्राह्मण टङ्कशाली लल्लूजीको लुद्रबे नगर के भाटी राजा मुन्धराबलजीने अपना गुरु बनाके व्यास पदवी दी थी। तभी से टल्लू जीके वंशवाले पुष्करणों की जाति में अबतक व्यास कहलाते हैं।
For Private And Personal Use Only