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राब पड़िहारने पुष्करणी का तालाब खुदवाया था उस समय न तो १ लाख ब्रामण जिमानेका सङ्कल्प ही किया था और न २० हज़ार ओडों को जनेऊ पहिनाके ब्राह्मण बनाये थे। किन्तु यदि क्षण भर के लिये इस मिथ्या कपोल कल्पना को मान भी . लें तो भी नाहरराव पड़िहार ने सङ्कल्प १ लाख ब्राह्मण जिमाने का किया था न कि १ लाख मनुष्य जिमाने का। फिर २०००० शूद्रों को जिमाने से क्या कभी १ लाख ब्राह्मण जिमाने का राजाका सङ्कल्प (मण) पूर्ण हो सकता है ? कदापि नहीं। यदि कहो कि राजाने शूद्रों को जनेऊ पहिना दी थी इस से वे ब्रामण हो गये थे तो यह बात भी नहीं बन सकती । क्यों कि मन्वादि धर्म शास्त्रों में शूद्रों को जनेऊ पहिनाने की आज्ञा ही नहीं है और न जनेऊ पहिनाने से शूद्र कभी ब्राह्मण हो सकते हैं। ब्राह्मण तो ही माने जावेंगे जो वंश परम्परा से ब्राह्मणों के कुल में जन्मे हों और उनके यज्ञोपवीतादि संस्कार भी विधिपू. र्वक किये गये हों । फिर नाहरराव पड़िहार जैसे धर्मात्मा राजा एक महान् धर्म कार्य के समय शास्त्रसे विरुद्ध ऐसा अधर्म का कार्य कदापि नहीं कर सकते । यदि उन्हें पूरे १ लाख ही ब्रा. ह्मण जिमाने थे तो जितने ब्राह्मण इकठे हुये थे उतनों को तो प्रथम दिन जिमा देते और जितने घटते उतने ब्राह्मण फिर उन्हीं में से दूसरे दिन जिमाके अपना प्रण पूर्ण कर सकते थे। अत: इस प्रण को पूर्ण करने के लिये शूद्रों को ब्राह्मण बनाने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी।
* न शूद्रे पातकं किञ्चिन्न च संस्कारमर्हति । भास्याधिकारोमर्धेऽस्ति न धर्मात्प्रतिषेधनम् ॥ मनु अ० १० श्लो० १२६
अर्थात् शूद्रों को यज्ञोपवीत आदि किसी संस्कार का अधिकार नहीं है।
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