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किया। अपवतः अत्यन्त उग्र तपस्या के कारण जब विश्वामित्र ब्रह्मऋषि मानने योग्य हो गये तब तो स्वयं ब्राह्मणोंने उन्हें राजऋषि से ब्रह्म ऋषि मान लिया, किन्तु भय से वा लोभ से नहीं माना। तो फिर ८० हजार ब्राह्मणों के सामने सब से नीचे दर्जे वाले अति शूद्र जाति के २० हजार ओड लोग क्यों कर एकदम क्षण भर में सबसे ऊँचे दर्जे वाली ब्राह्मण जाति में जा सकते थे। सच तो यह है कि इस देश के जाति, धर्म व मर्यादा को तोड़ के न तो नाहरराव पड़िहार शूद्रों को ब्राह्मण बना सकते थे और न २० हजार ओड ही ब्राह्मण बन सकते थे और न ८० इ. जार ब्राह्मण ही अपने सामने ऐसा धर्म विरुद-अधर्म का-कार्य होने देते। .... इतने पर भी यदि कोई ऐसा ही हठ करे कि नाहरराव प. डिहार ने पुष्करजी पर २० हजार ओड़ों को जबरन ब्राह्मणों के साथ जिमा के ब्राह्मण बना ही दिये थे तो भी यह बात तो कदापि साबित नहीं होती कि ओड़ों से जो ब्राह्मण बनाये गये हों वे पुष्करणे ही बामण हैं। क्यों किः
सृष्टि का नियम है कि जिन की उत्पत्ति जहाँ होती है बे. वहीं अधिकता से पाये जाते हैं। जिस प्रकार कि सृष्टि के प्रारम्भ में मनुष्यों की उत्पत्ति हिमालय पर्वत पर होने के कारण जितनी आबादी हिमालय के आसपास के देशों (भारत वर्ष और चीन) में है उतनी अन्य देशों में नहीं है। ऐसे ही १० प्रकार के ब्राह्मणों में से पञ्च गौड़ों में तो सारस्वत तो सरस्वती नदी के पास पंजाब में, कान्यकुब्ज कन्नौज में, गौड गौड़ देश में, मै. थिळ मिथिला में और उत्कल उड़ीसामें; तथा पञ्च द्राविड़ों में कर्णाटक कर्णाटकमें, तैलङ्ग तैलङ्ग में, महाराष्ट्र महाराष्ट्र में, द्रा
अधिक की उनके आनही है
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