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बाज तक इन का आचार द्राविड़ों ही के अनुकूल बना हुआ है नकि गाड़ों के अनुकूल ।
फिर एक बात यह.भी विचारने योग्य है कि टाह राजस्थान में तो लिखा है कि "ये पुष्कर खोदने से देवता की उपासे ब्राह्मण हो गये" किन्तु मर्दुम शुमारी राज्य मारवाड़ में लिखा है कि "२० हजार ब्राह्मणों के अभाव में इनको राजाने ब्राह्मण बना दिये" । अतः इन की उत्पत्ति का कारण इस प्रकार परस्पर विरुद्ध भिन्न २ लिखा होने-अर्थात् इस कल्पित कहानी का मूल कारण ही एक न होने से फिर इस के मिथ्या होने में स. न्देह ही क्या है ? __अतः पुष्करणे ब्राह्मण न तो वेलदारों ( ओंडों) से ब्राह्मण हुये हैं और न पुष्करणों के यहाँ कभी खुदाले की पूजा होती थी, वरन जिस प्रकार से अन्य ब्राह्मणों की उत्पत्ति हुई है उसी प्रकार पुष्करणे ब्राह्मणों की भी हुई है।
इसके अतिरिक्त इन का 'पुष्करणा' नाम भी बहुत माचीन काल से चला आता है जिस के कई प्रमाण मिलते हैं । जैसे___ महर्षि सौनक कृत "चरण व्यूह" नामक ग्रन्थ में चारों ही वेदों की शाखा आदि का वर्णन है । वहां यजुर्वेद के ८६ भेदों का वर्णन करते हुये प्राचीन भाष्यकारने 'गालव' के २४ भेदों में से २० वाँ भेद 'पुष्करणीया' माना है।
इसी प्रकार बहुत प्राचीन काल में एक पुष्करणे. ब्राह्मणने व्याकरण एक की पुस्तक बनाई थी जिसका प्रमाण भट्टोजि दोलित कृत सिद्धान्त कौमुदी के हल् सन्धि विषय के एक वात्तिक में मिलता है। "चयो द्वितीयाः शरि पौष्करसादे' रिति वाच्यम्"।
इन के अतिरिक्त प्राचीन इतिहास लेखक पादरी एम...ए.
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