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"पुष्करणा' कहलाये (और पुष्करणों का अपभ्रंश 'पोकरणा' हुआ है), जिसका वर्णन स्कन्द पुराणोक्त श्रीमाल क्षेत्र माहात्म्य बाद में हैं । वह सम्पूर्ण लेख तो 'पुष्करणोत्पत्ति' नामक पुस्तक में लिखा जावेगा परन्तु उस में से कुछ प्रमाण इस पुस्तक के अन्त में भी लिखेंगे जिससे कि सब लोगों को भले प्रकार से ज्ञात हो जावे कि पुष्करणे ब्राह्मण पञ्च द्राविड़ों में से गुर्जर ब्राह्मणों का एक भेद है । किन्तु प्रथम इस पुस्तक के पारम्भ में लौकिक प्राचीन इतिहासों के अनेक प्रमाण लिखता हूं जिस से सर्व साधारण को भी भळे प्रकार से ज्ञात हो बावे कि पुष्करणे ब्राह्मणों की जाति पुष्करजी का तालाब खुदने से सैकड़ों ही वर्ष पहिले ही से मारवाड़ में विद्यमान है, और मारवाड़ में आने से पहिले ये सिन्ध में वसती थी। यह बात केवल रिपोर्ट मर्दुम शुमारी राज्य मारवाड़ ही स्वीकार करती है,सो नहीं किन्तु यह बात स्वयं टाड राजस्थान से भी स्पष्ट सिद्ध होती है। फिर टाड राजस्थान की 'अजब कहानी' व मारवाड़ की मर्दुम शुमारी की 'लोक अ. फवाह' लिखने वालोंने जान बूझकर कितना भारी धोखा खा लिया है ? सो वह धोखा लोगों पर प्रगट करने के लिये प्रथम हमें इस बात का निर्णय करना है कि पुष्करजी का तालाब किसने खुदवाया? और कब खुदवाया? तथा पुष्करजी कातालाब खुदने से पहिले पुष्करणे ब्राह्मण थे वा नहीं ? और.थे तो कप थे ? और कहां थे ? यह निर्णय हो जाने से 'टाड राजस्थान की भूल' आपसे आपही स्पष्ट विदित हो जावेगी और टार रा. जस्थान की भूल सिद्ध हो जाने से फिर राजस्थान से धोखा खाने वालों की तो भूल स्वयं ही सिद्ध हो चुकेगी।'
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