________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शैरिङ्ग साहिब, एम. ए., एल एल. बी.' ने भी अपने बनाये हुये इतिहास की पहिली जिल्द में जहां सम्पूर्ण ब्राह्मणों का वर्णन लिखा है वहाँ ९९ वें पृष्ठ में पुष्करणे ब्राह्मणों की गणना पञ्च द्राविड़ों में से गुर्जर ब्राह्मणों में की है।
फिर टाड साहिब का कुछ भी निश्चय किये विना हो ऐसी विना प्रमाण को धोखे की बात अपने राज स्थानमें लिख कर लोगों को भ्रम में डालना.कितनी भूल है ? परन्तु इस भूल का कारण यह प्रतीत होता है कि उस तीर्थ का नाम 'पुष्कर' और इस जाति का नाम 'पुष्करणा ' देख के किसी धूर्त ने ऐसी कहानी घड़के धोखा दे दिया होगा, और टार साहिबने भी विदेशी होने के कारण ऐसा धोखा खालिया होगा। किन्तु इस प्रकार केवल नाम की कुछ सदृशता मात्र ही से ऐसा अनुमान कर लेना क्या कम भूल है ? इस जाति का एक नाम 'पोकरणा' भी है और मारवाड़ में, जोधपुर से पश्चिमकी ओर .४० कोश की दूरी पर, 'पोकरण' नामका एक गाँव भी है । तो फिर क्या इन की उत्पचि उस गाँव से भी माननी पड़ेगी ? नहीं नहीं क. दापि नहीं। इस के अतिरिक्त इन की उत्पत्ति पुष्करजी पर हुई होती तो इनका नाम 'पुष्करणे' वा 'पोकरणे' ब्राह्मण नहीं होता किन्तु 'पुष्करिये' वा 'पोखरिये' ब्राह्मण होता । फिर पु. करणे ब्राह्मणों के ये ही दो नाम नहीं हैं किन्तु 'सैन्धव' ( वा सिन्धी') तथा 'पुष्टिकरा' आदि नाम भी हैं। इन नामों का कारण यह है कि पूर्व काल में ये सिन्ध देश में वस्ते थे जिस से तो सिन्धी ब्राह्मण कहलाते थे। फिर श्रीमाल क्षेत्र में लक्ष्मीजी के यज्ञ में ब्राह्मणों की पुष्टि करने से लक्ष्मीजी ने प्रसन्न हो के ' पुष्टिकरा' होने का वर दिया तब से ‘पुष्टिकरा' तथा
For Private And Personal Use Only