________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तुरन्त पथ मुंह धोके उस मेंसे घोड़ासा लिया। और फिर को अपने हाथों पर दृष्टि डाली तो जो दाग़ कोड़के अपने हाथोंपर ये ले बिलकुल जाते रहे । राजाको बड़ा आनन्द हुआ। और यह फळ उस पवित्र जलका सोचके वहां ठहर गया और उस पवित्र स्थानके समाचारों का तलाश करने लगा। आखिर को शास्त्रों से सारे समाचार जानके और पूर्ण रीति से पता लगाके राजाने बनको कटवाया और उस पवित्र स्थान को खोदकर एक बड़ा भारी तालाब बनवा दिया। राजाने हर एक स्थान अपनी २ जगह ठहरा कर बनवा दिये और बारह धर्मशालायें पक्के घाट सहित पुष्कर सरोवरके तीनों तर्फ तयार कराई, एक तर्फ पानी मानेके लिये खाली छोड़ दो। ये स्थान अब बिलकुल नष्ट हो गये हैं, परन्तु तब भी अब तक दो तीन जगह कुछ २ फूटे हुये मकानों के चिह्न मौजूद हैं। उस ही राजा नाहरराव पड़िहारका स्थान है.।" (जे. डी. लाटूश साहिब बहादुर की आज्ञा से सं. १९१३ में लाहोर वाले एक्स्ट्रा असिस्टेण्ट कमिश्नर पं० महाराज कृष्ण की बनाई हुई अजमेर की तवारीख़ का पृष्ठ १५ वाँ । इस की नकल उसे हिन्दीमें सन् १८९२ ई० में मौलवी मुहम्मद मुराद अलीके चिराग़ राजस्थानमें छपी उसके पृष्ठ १, २ और ३)
इन तवारीखों से यह बात तो निश्चयही है कि पुष्करजी का तालाब पारम्भमें तो मनुष्योंका खोदा हुथा ही नहीं है किन्तु ब्रह्माजीने कमलका पुष्प डालके स्वयं उत्पम किया था इसीलिये इसे 'देष खास' कहते हैं यथा 'पुष्कराया देवखाता' परन्तु वह तीर्थ काळ पाके अदृश्य हो गया था। उस को पीछा प्रकट कराने के लिये श्री बाराइ भगवान् ने श्वेत शूकर का रूप धारण कर के मण्डोर के राजा नाहरराव पड़िहार को पुष्कर के जङ्गल में
For Private And Personal Use Only