________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६
पुष्कर उत्पत्ति का इतिहास |
पुराणों का मत -
पुष्करजी की उत्पत्ति प्रथम ब्रह्माजी से हुई है जिसका वर्णन - पुराणों में विस्तार से लिखा है उन में से पद्म पुराण के सृष्टि खण्ड के अध्याय १५ वें से जो पुष्कर माहात्म्य है, तदनुसार पुष्कर माहात्म्य सारोदार बना है, जिसमें से कुछ श्लोक यहां लिखता हूँ । "एवं विभु चिरं ध्यात्वा हस्तात् कमलमुत्तमम् | प्रक्षिपेद्धरणीतीरे स्वस्त्यपिति समालयातू । ततस्तत्पतितं यत्र पुरा तस्माद्वितीयकम् । स्थाने गतं तृतीयं च वेगे तात्पत्ति वारिजम् ॥ तेषु तोयं सुनिःक्रान्तं सर्वेष्वपि सु निर्मलम् । एतान्य पुष्करं पृष्टं यावन्मात्रं धरातलम् । पुष्करं नाम विख्यातं त्रैलोक्येऽपि भविष्यति ॥
" एक समय ब्रह्माजी की इच्छा यज्ञ करने की हुई । तब उन्हों ने 'पृथ्वी पर कौनसी भूमि यज्ञ करने योग्य है, इस की परीक्षा करने के लिये अपने हाथ से एक कमळ का पुष्प ऊपर से पृथ्वी पर डाला । वह पुष्प प्रथम जिस भूमि पर गिराया वहां से उछल के दूसरे स्थान पर गिरा और फिर वहां से भी उछल के तीसरे स्थान पर गिरा । ऐसे जिन ३ स्थानों पर वह पुष्प गिरा था वहां स्वयं ही निर्मल जल निकल आया, जिससे वे ३ कुण्ड हो गये । फिर ब्रह्माजीने वहां पर यज्ञ किया । भूमि में से जल कमल का पुष्प गिरने से निकला था । और कमल का दूसरा नाम पुष्कर है, इसी लिये यह स्थान 'पुष्कर' ( वा त्रिपुकर ) नाम से प्रसिद्ध तीर्थ हो गया । " इत्यादि ।
For Private And Personal Use Only