________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विड़ द्राविड़ में और गुर्जर गुजरात में ही आज तक अधिकतासे पाये जाते हैं। ऐसे ही यदि पुष्करणे ब्राह्मणों की उत्पत्ति पुष्करजी ही पर हुई होती तो इन की आबादी भी पुष्करजी पर - वश्य होनी चाहिये थी। किन्तु पुष्करजी तो क्या पुष्करजी के आसपास भी पुष्करणे ब्राह्मणों की वस्ती बिलकुल ही नहीं है और न पुष्करजी से समूले कहीं चले जाने ही का कोई प्रमाण मिलता है। वरन इसके विपरीत ये बहुत माचीन काल में गुजरात के समीप वर्ती सिन्ध देश में वसते थे और फिर वहां से कच्छ और मारवाड़ में आये और मारवाड़ से सर्वत्र फैले हैं। अब भी इन की आबादी जितनी सिन्ध, कच्छ और मारवाड़ में है उतनी और कहीं भी नहीं है । इन की बोल चाल में अब तक सिन्धी शब्द विद्यमान हैं । इतना ही नहीं किन्तु स्त्रियों के वस्त्र तथा आभूषण आदि में भी सिन्ध देश का अनुकरण चला आता है । इस के कई प्रमाण मिलते हैं, जिसे मारवाड़ की मर्दुम शुमारी सन् १८९१ ई. के तीसरे भाग के पृष्ठ १५५ व १६१ में समयाण स्वीकार किया है, सो देखिये:
"पुष्करणा वा पोकरणा ब्राह्मण-ये मारवाड़ में सिन्ध से आये हैं इनके गोत और गालियों में अब तक सिन्धी लफ्ज़ मौजूद हैं।
* इस समय अजमेर किशनगढ़ आदि में जो कोई थोड़े से पुष्करणे. ब्राह्मण बसते भी हैं, वे भी थोड़े ही वर्ष हुये कि मारवाड़ ही से जाके वसे हैं । और पुष्करजी पर जो तीर्थ के पण्डे - ( पुष्कर गुरु ) वसते हैं वे पु. करणे ब्राह्मणों की जाति में से नहीं है और न पुष्करणों की मातिसे उन की माति का कुछ सम्बन्ध ही है।
For Private And Personal Use Only