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हमारे मारवाड स्थ-जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, जयपुर, आदि की रियासतों में भी कई जाति के ब्राह्मण बसते हैं। उनमें राज्य पुरोहित, राज्यगुरु और राज्य मुत्सद्दी आदि के लिये पुष्करणे ब्राह्मणों की जाति प्रसिद्ध और प्रधान है । इनकी जाति सिन्ध देश में बनी है। इनके पूर्वज यदुवंशियोंके पुरोहित (कुलगुरु) होने से यदुवंशियों की राजधानी द्वारिकाके आसपास के देशों में अर्थात् सिन्ध, कच्छ और मारवाड़ की हद्द पर अधिक बसते थे । अतः उस देश के अनुकूल और जाति के उपयोगी हों, वैसे नियम बनाके अपनी जाति म. र्यादा स्थिर करली।
स्कन्द पुराणादि में लिखा है कि प्राचीन काल में पुष्करणे ब्राह्मण सिन्ध देशमें निवास करते थे और उस समय सिन्धी ब्राह्मण कहलाते थे। फिर लक्ष्मीजीने अपना विवाह होने के पश्चात् प्रसन्न होकर श्रीमाल नगर में इनको 'उदार, राज्यपूज्य शुद्ध, सन्तोषी, ब्राह्मणों के पुष्टिकर्ता, धर्मके पुष्टिकर्ता और ज्ञान के पुष्टिकर्ता' कहकर पुष्करणा कहलाने का वर दिया
उदारा राज्यपूज्याश्च शुद्धाः सन्तोषिणः सदा । ब्राह्मणानां पुष्टिकरा धर्मपुष्टिकरास्तथा ॥ ज्ञानपुष्टिकरास्तस्मात् पुष्करणाख्या भविष्यथ ।
तबसे ये पुष्टिकरणे अर्थात् पुष्करणे ब्राह्मण कह लाने लगे और इसका अपभ्रंश पोकरणा होने से अब पोकरणे ब्राह्मण भी कहलाते हैं । सारांश यह कि पूर्व कालमें जो ब्राह्मण पश्च द्राविड़ो में गुर्जरों की एक शाखा सिन्धी ब्राह्मण कहलाते थे वेही श्री लक्ष्मीजी के वरदान से पुष्करणे वा पोकरणे ब्राह्मण कहलाने कगे हैं।
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