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दूसरा अध्याय
जैन आगम साहित्य जैन आगम ( ईसवी सन् के पूर्व ५वीं शताब्दी से
लेकर ईसवी सन् की ५वीं शताब्दी तक ) जैन आगमों को श्रुतज्ञान अथवा सिद्धांत के नाम से भी. कहा जाता है । जैन परम्परा के अनुसार अर्हत भगवान ने आगमों का प्ररूपण किया और उनके गणधरों ने इन्हें सूत्ररूप में निबद्ध किया ।' आगमों की संख्या ४६ है । १. अस्थं भासइ अरहा, सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं । सासणस्स हियठाए, तो सुत्तं पवत्तेइ ॥
___-भद्रबाहु, आवश्यकनियुक्ति ९२ । २. ८४ आगमों के नाम निम्न प्रकार से हैं (जैनग्रंथावलि, श्री जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स, मुम्बई वि० सं० १९६५, पृ० ७२)
११ अंग, १२ उपांग, ५ छेदसूत्र (पंचकप्प को निकालकर), ५ मूलसूत्र (उत्तरायण, दसवेयालिय, भावस्सय, नंदि, अणुयोगदार), ८ अन्य ग्रन्थ (कल्पसूत्र, जीतकल्प, यतिजीतकल्प, श्राद्धजीतकल्प, पाक्षिक, क्षामणा, बंदित्तु, ऋषिभाषित) और निम्नलिखित ३० प्रकीर्णकः१. चतुःशरण ११. अजीवकल्प २१. पिंडनियुक्ति २. आतुरप्रत्याख्यान १२. गच्छाचार २२. सारावलि ३. भक्तपरिज्ञा १३. मरणसमाधि २३. पर्यताराधना ४. संस्तारक १४. सिद्धप्रामृत २४. जीवविभक्ति ५. तंदुलवैचारिक १५. तीर्थोद्वार २५ कवच ६. चंद्रवेध्यक१६. आराधनापताका २६. योनिप्राभृत ७. देवेन्द्रस्तव १७. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति २७. अंगचूलिया ८. गणिविद्या १८. ज्योतिष्करण्डक २८. वंगचूलिया ९. महाप्रत्याख्यान १९. अंगविद्या । २९. वृद्धचतुःशरण १०. वीरस्तव २०. तिथिप्रकीर्णक ३०. जंवूपयन्ना