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के मन में कुछ उलझन-सी पैदा हो गयी थी। उनकी ओर देखा, फिर पोथी खोलने मैं लगे।
हेगड़े मारसिंगय्या ने पूछा, "आपकी यह शिष्या कैसी है?"
"सैकड़ों विद्यार्थियों को पढ़ाने के बदले ऐसी एक शिष्या को पढ़ाना ही पर्याप्त है, हेग्गड़ेजी?"
"इतना बढ़ा-चढ़ाकर कहना ठीक नहीं।"
''यह आतशयोक्ति नहीं हेगड़ेजी। सम्भवतः आप नहीं समझते होंगे। आपकी दृष्टि में यह छोटी मुग्ध बाला मात्र है। अभी जन्मी छोटी बालिका आपके सामने आँखें खोल रही है। परन्तु इसकी प्रतिभा, धीशक्ति का स्तर ही कुछ और है। सचमुच आप बड़े भाग्यवान हैं। आप और हेगड़तीजी ने उत्तम पुष्पों से भगवान् की पूजा की है। इसी पुण्य से साक्षात् सरस्वती ही आपकी पुत्री के रूप में अवतरित हुई है। आपको आश्चर्य होगा अभी बालिका दस साल की भी नहीं हुई होगी। दो साल से मैं पढ़ा रहा हूँ। सोलह वर्ष की उम्र के बच्चों में भी न दिखनेवाली सूक्ष्म ग्रहणशक्ति और तन्मयता इस बालिका में है। पूर्व-पुण्य का फल और दैवानुग्रह दोनों के संगम से ही यह प्रतिभा इस बालिका में है। आपकी यह बेटी आज अमरकोश के तीनों काण्ड कण्ठस्थ कर चुकी है। यह अम्माजी गार्गेयी मैत्रेयी की पंक्ति में बैठने लायक है। ऐसे शिष्य मिल जाएँ तो सात-आठ वर्षों में सकलविद्या पारंगत बनाये जा सकते हैं।"
"मैं मान लूँ कि अपनी इन बातों की जिम्मेदारी को आप समझते हैं।"
"जी हाँ, यह उत्तरदायित्व मुझ पर रहा। यह अम्माजी मायके और ससुराल दोनों वंशों की कीर्ति-प्रतिष्ठा को आचन्द्रार्क स्थायी बना सकने योग्य विचारशीला बनेगी।"
"सभी माता-पिता यही तो चाहते हैं।' "इतना ही नहीं, यह अम्माजी जगती- मानिनी बनकर विराजेगी।"
अब तक पिता और गुरु के बीच जो सम्भाषण हो रहा था, उसे सुनती रही अम्माजी। अब उसने पूछा, "गुरुजी! इस जगती-मानिनी का क्या माने है?"
गुरुजी ने बताया, "सारे विश्व में गरिमायुक्त गौरव से पूजी जानेवाली मानवदेवता।"
"मानव देवता कैसे बन सकता है?" शान्तला ने पूछा। "उसके व्यवहार से। शान्तला ने फिर से सवाल किया, "ऐसे, मानब से देवता बननेवाले हैं क्या?"
"क्यों नहीं अम्माजी, हैं अवश्य 1 भगवान् महावीर, भगवान् बुद्ध, शंकर भगवत्पाद और अभी हाल के हमारे स्वामी बाहुबलि, कितने महान् त्यागी हैं। आप सब कुछ विश्वकल्याण के लिए त्यागकर बिलकुल नग्न हो जो खड़े हैं। उनका वृहत्काय शरीर, फिर भी सद्योजात शिशु की तरह भासित मुखमण्डल, निष्कल्मष और
पट्टमहादेवी शासला :: 33