________________ श्री पञ्चाशक प्रकरण - 10 गुजराती भावानुवाद 221 टीअर्थ :- 'लोगववहारविरओ'= सो व्यवहारथी निवृत्ति डोय छे. पास जरीने पार्मि: व्यवहार 4 उरतो डोय छे. 'बहुसो'= वारंवार 'संवेगभावियमई य= बुद्धिने भोक्षना अभिलाषयी मावित ४२तो होय छे. 'पुव्वोदियगुणजुत्तो'= पूर्वोतमा प्रतिभाना गुथी युत 'णव मासा जाव'= नव महिना सुधी 'विहिणा उ'= शास्त्रोत विधि व पासन 3 . // 475 // 10/31 નવમી પ્રતિમા કહેવાઈ. હવે દશમી પ્રતિમાને કહે છે : उद्दिट्ठकडं भत्तं पि वज्जती किमय सेसमारंभं?। सो होइ उखुरमुंडो, सिहलिं वा धारती कोइ // 476 // 10/32 छाया :- उद्दिष्टकृतं भक्तमपि वर्जयति किमुत शेषमारम्भम् / सो भवति तु क्षुरमुण्डः शिखां वा धारयति कोऽपि // 32 // ગાથાર્થ :- દશમી પ્રતિમામાં રહેલ શ્રાવક પોતાના માટે બનાવેલ ભોજનનો પણ ત્યાગ કરે છે તો પછી બીજા આરંભોનો તો વિશેષથી ત્યાગ કરે, તે મસ્તકે અસ્ત્રાથી સંપૂર્ણ મુંડન કરાવે છે. અથવા કોઇક ચોટલી રાખે છે. टार्थ :- 'उद्दिकडं भत्तं पि'= पोताना भाटे बनावेडं मोशन 'वज्जती'= त छ. 'किमय सेसमारंभं ? = तो भी सावध मारमनीशी वात ४२वी ? अर्थात तेने तो विशेषथी त४. 'सो होइ उ'= ते शमी प्रतिमामा रहेको श्राव होय छे. 'खुरमुंडो'= मस्त ने अस्त्राथी मुंडावेसो 'सिहलिं वा'= अथवा योटलीने 'धारती कोइ'= ओ४ श्राप पा२९॥ 42 छ. // 476 // 10/32 जं णिहियमत्थजायं, पुट्ठोणियएहिणवरं सो तत्थ / जइ जाणइ तो साहे, अहणवि तो बेइ णवि जाणे // 477 // 10/33 छाया :- यन्निहितमर्थजातं पृष्टो निजकैः नवरं स तत्र / यदि जानाति तदा साधयति अथ नैव तदा ब्रूते नापि जाने // 33 // ગાથાર્થ :- સ્વજન વગેરે ભૂમિ વગેરેમાં સ્થાપેલા ધન વિશે પૂછે તો જો પોતે જાણતો હોય તો કહીને બતાવે. ન કહે તો તેમના ધર્મવ્યવહારમાં ક્ષતિ આવે, માટે કહે છે. હવે જો પોતે જાણતો ન હોય તો 'ई नथी तो' सेभ ४वाल मापेछ. टीअर्थ :- 'जं णिहियं'= भूमि वगैरेभ स्थापो होय 'अत्थजायं = धन "णियएहि'= १४नो वडे 'पुट्ठो'= पूछवामां आवे तो 'णवरं'= ईजत 'सो'= दृशभी प्रतिभामा २डेलो 'तत्थ= ते धन विशे 'जइ जाणइ'= तो होय 'तो साहे'= तो तो १४नोन धर्मना पासनने भाटे 4, न तो धन विना मना धर्मव्यवहारमा क्षति थाय. 'अह णवि'= ओन रातो होय 'तो बेइ'= तो 'णवि जाणे'= हुं तो नथी. // 477 // 10/33 આ દશમી પ્રતિમાપારી શ્રાવક કેવો હોય ? તે કહે છે : जतिपज्जुवासणपरो, सुहुमपयत्थेसु णिच्चतल्लिच्छो। पुव्वोदियगुणजुत्तो, दस मासा कालमासेणं // 478 // 10/34 7.