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सवाल जाति का इतिहास
पौत्रों के समय में भी भोसवाल मुत्सुहियों का खूब दौर औरा रहा । महाराजा की अधीनता में वे शासन के प्रधान सूत्रधार रहे। जैतसिंहजी और ओसवाल मुत्सद्दी
राव लूनकरनजी के बाद राव जैतसिंहजी बीकानेर के नरेश हुए। आपके समय में वरसिंहजी और उनके पश्चात् उनके पुत्र नगराजजी प्रधान मंत्री के पद पर अधिष्ठित हुए । आप बड़े राजनीतिज्ञ और कुशल शासक थे। तत्कालीन दिल्ली सम्राट की सेवा में भी आपको रहना पड़ा था। वहाँ मापने अपनी चतुराई से सम्राट को बहुत खुश कर लिया और बीकानेर का उससे हित साधन करवाया।
इसी समय जोधपुर के प्रतापी महाराजा मालदेव ने जाङ्गलू (वर्तमान बीकानेर राज्य) देश पर मधिकार करने की इच्छा प्रदर्शित की। यह बात तत्कालीन बीकानेर नरेश जेतसिंहजी को मालूम होगई। इस पर महाराजा जैतसिंहजी ने नगराजजी को कहा कि मालदेव से विजय प्राप्त करना कठिन है । इसलिए उचित पह है कि उनके चढ़ आने के पहले ही सन्नाट शेरशाह की सहायता प्राप्ति का प्रबन्ध कर लिया जाय । कहना म होगा कि नगराजजी सम्राट शेरशाह की सेवा में पहुंचे और उन्होंने सम्राट को मालदेव के ऊपर चदाई करने के लिये उकसाया। लेकिन सम्राट् शेरशाह की सहायता पहुँचने के प्रथम ही मालदेव के साथ युद्ध करते जैतसिंहजी मारे गये और बीकानेर पर मालदेवजी का अधिकार हो गया । इसके कुछ समय बाद सम्राट शेरशाह एक बहुत बड़ी फौज के साथ मारवाड़ पर चढ़ आया । मारवाड़ के राव मालदेवजी ने बड़ी बहादुरी के साथ उसका मुकाबिला किया । बीर राठोड़ों की बहादुरी के सामने शेरशाह बादशाह किंकर्तव्य विमूढ हो गया । उसके सामने निराशा का अंधकार छागया, वह वापस लौटना ही चाहता था कि वीरमदेव नामक मेड़ता के एक-सरदार के षड्यंत्र और चालाकी से सारा पांसा उलट गया। सम्राट शेरशाह की विजय हो गई और इस तरह नगराज जी ने शेरशाह की मदद द्वारा मालदेव से बीकानेर का राज्य छीनकर जैतसीजी के पुत्र कल्याणसिंहजी को दिला दिया।
राव कल्याणसिंहजी और ओसवाल मुत्सुद्दी
राव कल्याणसिंहजी ने संवत् १६०३ से लेकर संवत् ११३० तक बीकानेर का राज्य किया। भापके समय में भी शासन की बागडोर प्रायः ओसवाल मुत्सुहियों के ही हाथ में रही । राव कल्याणमलजी ने भूतपूर्व मंत्री नगराजजी के पुत्र संग्रामसिंहजी को अपना प्रधान मंत्री नियुक्त किया । संग्रासिंहजी ने शत्रुजय आदि तीर्थों की यात्रा के लिये संघ निकाले । जब आप यात्रा करते हुए चित्तोड़गढ़ में भाये तब यहाँ के तत्कालीन