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व्यावहारिक जीवन में-कर्म-सिद्धान्त की उपयोगिता ४७
जन्मों में किये हुए कर्मों के साथ बिठाता है, उनके इस आक्षेप का भी खण्डन हो जाता है। उपर्युक्त दोनों उदाहरणों में मानव के पूर्वजन्मकृत कर्म के फलयुक्त वर्तमान व्यवहार की व्याख्या नहीं है, अपितु इस जन्म में ही किये हुए शुभ-अशुभ कर्म के फलयुक्त व्यवहार की व्याख्या है, जो कि आबाल-वृद्ध के द्वारा भी इसी रूप में प्रस्तुत की जाती है। यह अवश्य है कि फल चाहे इस जन्म के किये हुए कर्मों का हो या पूर्वजन्मकृत कर्मों का, कहलाता वह पूर्वकृत कर्म ही है। पूर्वकृत में इस जन्म में किये हुए कर्म भी आ जाते हैं और पूर्वजन्मकृत कर्म भी।
इसलिए यह निःसन्देह कहा जा सकता है कि कर्मविज्ञान केवल आदर्श या सिद्धान्त की व्याख्या ही नहीं करता अपितु कर्म के द्वारा व्यावहारिक जीवन-व्यवहार की व्याख्या भी प्रस्तुत करता है। जैन इतिहास की प्राचीन कथाओं में यत्र-तत्र इहजन्मकृत या पूर्वजन्मकृत शुभाशुभ कर्मों के फलस्वरूप मनुष्य के वर्तमान व्यवहार की व्याख्या की गई है। इससे जैन कर्मविज्ञान की उपयोगिता प्रत्यक्ष सिद्ध हो जाती है।
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