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जैन कर्म-विज्ञान की विशेषता १३३
करता है; परन्तु सबको आत्मौपम्य दृष्टि से देखता है, त्रस और स्थावर सभी जीवों पर समभाव रखता है। कर्मविज्ञान का यही ध्येय है कि व्यक्ति इस संसार में रहता हुआ भी तथा सभी कर्तव्यों और दायित्वों का निर्वाह करता हुआ भी प्राणियों के प्रति निर्लेप, निरासक्त, निरहंकार होकर रहे। तभी वह कर्म के बंध और आम्नव से बच सकता है। कर्मविज्ञानः प्राणिमात्र के प्रति सर्वभूतात्मभूत बनने का प्रेरक
विश्व में कई धर्म-सम्प्रदाय तथा मत-पंथ एवं दर्शन प्रचलित हैं। उनमें से कई पंथ तो अपने-अपने कौटुम्बिक स्वार्थ तक की मान्यता वाले हैं। उन्हें कुटुम्ब से आगे कुछ भी हो, उससे कोई मतलब नहीं। कई मत-पंथ कौमवादी या जातिवादी हैं। उन्हें अपने-अपने कौम या जाति (ज्ञाति) से मतलब है, उससे आगे उनकी दृष्टि नहीं पहुँचती। कई मत-पंथ अपने धर्म-सम्प्रदाय, संघ या समाज से ही अपना सम्बन्ध रखने की प्रेरणा करते हैं। कतिपय विचारक अपने-अपने देश या राष्ट्र की परिधि में ही रहते हैं। उससे आगे वे कुछ भी कर्तव्य नहीं समझते हैं। परन्तु कुछ उदारवादी धर्म या सम्प्रदाय सारे विश्व को-यानी विश्व के सभी मानवों को अपना समझते हैं, और उनके सुख-दुःख का विचार करते हैं। ऐसे उदारवादी व्यक्तियों के विचारों में उदारता, समन्वय, मैत्रीभाव, बन्धुत्व आदि गुण अधिक मात्र में होते हैं। ऐसे लोग विश्व में सुख-शान्ति, पारस्परिक सद्भाव और सहृदयता की भावना से चलना चाहते हैं तो वन वर्ल्ड (एक दुनिया) का आदर्श सामने रखते हैं। यह निश्चित है, पूर्व-पूर्व संकीर्ण दृष्टि वालों की अपेक्षा उत्तरोत्तर उदार दृष्टिवालों की तन, मन, वचन की प्रवृत्ति, व्यवहार, विचारधारा और आचारधारा एवं दृष्टि में अन्तर अवश्य होगा। जैनकर्मविज्ञान :प्राणिमात्र के प्रति आत्मवत् भावना का प्रेरक - परन्तु इन सबका सम्बन्ध केवल मनुष्यजाति से है, एक दुनिया (वन वर्ल्ड) का आदर्श भी मनुष्यजाति तक सीमित है।' जैनकर्मविज्ञान तो इससे भी आगे बढ़कर विश्व के समस्त प्राणि वर्ग (छह ही काय के जीवों) के प्रति आत्मवत् व्यवहार, विचार और दृष्टि रखने की बात कहता है। जैनकर्मविज्ञान कहता है कि मनुष्य मात्र ही नहीं, प्राणिमात्र के प्रति यदि तुम हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य, असंयम, अहंत्व-ममत्व आदि का व्यवहार करोगे या वैसे व्यवहार करने का विचार, चिन्तन या ध्यान भी करोगे, वचन से भी उनके प्रति वैसा सावध (पापमय) वचन बोलोगे, तो अशुभ कर्म का आम्नव और बन्ध हो जाएगा। उस बाँधे हुए कर्म का फल तुम्हें देर सबेर अवश्य भोगना पड़ेगा।
१. देखें, अध्यात्म विज्ञान प्रदेशिका में उद्धृत 'कर्म विज्ञान' नामक लेख से, पृ. ९ २. अप्पसमं मनिज्ज छप्पिकाए।
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