Book Title: Karm Vignan Part 02
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 491
________________ - पुण्य और पाप के फल : धर्मशास्त्रों के आलोक में ४७१ अकाममरण से मृत लोगों के लक्षण और उसका फल उत्तराध्ययन के पंचम अध्ययन में अकाम मरण से मरने वाले लोगों के लक्षण तथा फल बताते हुए कहा गया है-जो अज्ञानी मनुष्य कामभोगों में अत्यासक्त होकर अतिक्रूरकर्म करता है, वह भोगासक्त जीव नरकादि की ओर जाता है। वह प्रत्यक्षदर्शी होकर परलोक को नहीं मानता और बेखटके पापकर्म करता रहता है। कामभोगों में रत मानव यही सोचता है कि दूसरे भोगपरायण लोगों की जो गति होगी, वही मेरी होगी। इस प्रकार धृष्ट बन कर कामभोगासक्त होकर पापकर्म करने से यहाँ और वहाँ क्लेश ही पाता है। कामभोगों के साधनों को पाने के लिए वह त्रस एवं स्थावर जीवों की सार्थक या अनर्थक हिंसा करता रहता है। हिंसा, झूठ, माया, चुगली, धूर्तता, ठगी, मद्य-मांस-सेवन आदि पापकों को अपने लिये श्रेयस्कर समझकर करता है। फिर वह तन-मन से मत्त (गर्विष्ठ) होकर धन और स्त्रियों में आसक्ति रखता है। ऐसा मनुष्य राग और द्वेष दोनों तरह से कर्ममल का संचय करता है। इन सब पाप कार्यों के कारण अष्टविध कर्ममल का संचय करके वह भोगासक्त जीव प्राणघातक रोग से संतप्त होता है, अपने अशुभ कर्मों का अनुप्रेक्षण (स्मरण) करके परलोक से अत्यन्त भयभीत होने लगता है। उसकी आँखों के सामने पहले सुने हुए नरक गति के भयंकर यातनापूर्ण स्थान, तीव्र वेदना का स्मरण करने से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वह सोचता है-इन नरकों में उत्पन्न होने का स्थान होता है, जहाँ उत्पन्न होने के अन्तर्मुहूर्त के बाद ही महावेदना का उदय हो जाता है, जो निरन्तर रहता है। फिर वह अपने कृत कर्मों के अनुसार वहाँ जाता हुआ पश्चात्ताप करता है।' १. कामगिद्धे जहा बाले भिसं कूराई कुब्वइ॥४॥ जे गिद्धे कामभोगेसु एगे कूडाय गच्छई। न मे दिट्टे परे लोए, चक्खुदिट्ठा इमा रई॥५॥ हत्थागया इमे कामा, कालिया जे अणागया। · को जाणइ परे लोए, अस्थि वा नत्थि वा पुणो॥६॥ जणेण सद्धिं होक्खामि इइ बाले पगब्भइ। कामभोगाणुराएण केसं संपडिवज्जइ॥७॥ तओ से दंडं समारंभई तसेसु थावरेसु य । अट्ठाए य अणट्ठाए भूयग्गामं विहिंसइ ।।८।। हिंसे बाले मुसावाई माइल्ले पिसुणे सढे। • भुंजमाणे सुरं मंस सेयमेयं ति मन्नइ ॥९॥ कायसा वयसा मते वित्ते गिद्धे य इत्थिसु। दुहओ मलं संचिणई, सिसुणागुब्ब मट्टियं ।।१०।। सुया मे णरएठाणा असीलाणं च जा गई। बाला कूर कम्माणं पगाढा जत्थ वेयणा ॥१२॥ -उत्तरा. अ. ५ गाथा ४ से १२. तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560