Book Title: Karm Vignan Part 02
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 553
________________ पुण्य-पाप के निमित्त से आत्मा का उत्थान-पतन ५३३ राजप्रश्नीय सूत्र में प्रदेशीराजा से सूर्याभदेव तक का संक्षिप्त परिचय राजप्रश्नीय सूत्र में भी श्वेताम्बिका नगरी के प्रदेशी राजा का वर्णन आता है जिसका पूर्व जीवन अत्यन्त नास्तिक, क्रूर और पाप कर्म करने में निःशंक था, किन्तु केशी श्रमण के सत्संग से धर्मश्रद्धा से उसके जीवन ने पलटा खाया। वह धर्म-निष्ठ, रमणीक एवं नीतिमान् बन गया । अन्तिम समय में समाधिपूर्वक मरण प्राप्त करके वह जीवन के उत्तरार्ध में संचित पुण्य रााशि के फलस्वरूप सूर्याभदेव बना । यह था, पुण्य से सुखदफल प्राप्ति का ज्वलन्त उदाहरण ।' निरयावलिका सूत्र : प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रथम वर्ग का संक्षिप्त परिचय निरयावलिका आदि पाँच उपांगों में भी कर्मों के दुःखद - सुखद फल प्राप्ति का वर्णन है। निरयावलिका का अर्थ है जो अपने पाप कर्मों के फलस्वरूप नरक गति की आवलिका - पंक्ति में प्रविष्ट हुए हैं, वे व्यक्ति निरयावलिक हैं। निरयावलिका सूत्र आदि पाँच उपांगों के पाँच वर्गों में विभक्त किया गया है। सर्वप्रथम वर्ग निरयावलिका का है। इसके प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम वर्ग में 90 कथानायकों के नाम से १० अध्ययन कहे गए हैं - (१) काल, (२) सुकाल, (३) महाकाल, (४) कृष्ण, (५) सुकृष्ण, (६) महाकृष्ण, (७) वीरकृष्ण, (८) रामकृष्ण, (९) पितृसेनकृष्ण और (१०) महासेनकृष्ण श्रेणिक राजा की काली, सुकाली, महाकाली, कृष्णा, सुकृष्णा, महाकृष्णा, वीरकृष्णा, रामकृष्णा, पितृसेनकृष्णा और महासेनकृष्णा, ये दस रानियाँ थीं, ये कोणिक की छोटी माताएँ थीं। इनके नाम से इनके पुत्रों का नाम रखेगये थे। जिस समय कोणिक राजा एक हार और सेंचानक हाथी को हल्ल - विहल्लकुमार से हथियाने के लिए उद्यत हो गया था। हार और हाथी न देने पर उसने युद्ध की धमकी भी दी थी, और भी अन्य प्रकार से भयभीत कर दिया था। अतः हल्ल-विहल्लकुमार अपने नाना तत्कालीन गणराज्याधिपति चेटक राज की शरण में गए। नाना के द्वारा समझाने पर भी कोणिक नहीं माना और उनसे युद्ध करने को उद्यत हो गया । इस प्रकार अन्याय और परिग्रह के भयंकर पाप से प्रेरित होकर कोणिक ने युद्ध छेड़ दिया। कालकुमार आदि दस कुमारों ने भी इस अन्यायपूर्ण युद्ध में कोणिक को पूर्ण सहयोग दिया। इसके कारण उभय पक्ष के एक करोड़ अस्सी लाख मनुष्यों का संहार हुआ। इस अन्यायपूर्वक युद्ध से पंचेन्द्रिय वध के कारण दसों कुमारों को युद्ध में मरकर नरकगति का अतिथि बनना पड़ा। १. देखें- राजप्रश्नीयसूत्र में प्रदेशी राजा का पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध का जीवनवृत्त (आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560