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पुण्य-पाप के निमित्त से आत्मा का उत्थान-पतन ५३५
स्थिति वाले देवरूप में उत्पन्न हस्तिनापुर निवासी वलि (पलि) ताक देव की, और दसवें अध्ययन में द्विसागरोपम की स्थिति वाले देवरूप में उत्पन्न काकन्दी नगरी निवासी अनाधृत गृहपति की वक्तव्यता है। इन सभी ने पुण्योपार्जन के फलस्वरूप मनुष्य लोक से देवलोक रूप सुखद फल की प्राप्ति की। निरयावलिका चतुर्थ श्रुतस्कन्ध, चतुर्थ वर्ग : पुष्पचूलिका : दस अध्ययन
निरयावलिका के चतुर्थ श्रुतस्कन्ध के चतुर्थ वर्ग का नाम पुष्पचूलिका उपांग सूत्र है। इसके भी दस अध्ययन हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) श्रीदेवी, (२) ही देवी, (३) धृति देवी, (४) कीर्ति देवी, (५) बुद्धि देवी, (६) लक्ष्मी देवी, (७) इलादेवी, (८) सुरादेवी, (९) रसा देवी और (१०) गन्ध देवी। इन दस कथानायिका देवियों के नाम से दस अध्ययन हैं। श्रीदेवी का पूर्व जीवन, संयमी जीवन और प्रथम स्वर्ग प्राप्ति
श्रीदेवी का पूर्वभव इस प्रकार है। राजगृह नगर के सुदर्शन गृहपति की पत्नी सुमाला थी। उस सुदर्शन गाथापति की पुत्री प्रिया नाम की गाथापत्नी थी, उसकी पुत्री अर्थात् सुदर्शन गाथापति दौहित्री भूता नाम की दारिका थी। वह बचपन से ही वृद्धा, वृद्धकुमारी, जीर्णा, जीर्णकुमारी थी, उसके स्तन बिलकुल नहीं थे। इसलिए उसके पति ने उसे छोड़ दी थी। एक बार नगर में पुरुषादानीय पार्श्वनाथ तीर्थंकर पधारे। भूता दारिका ने जब लोगों से सुना कि पार्श्वनाथ अर्हत् देवगणों से परिवृत रहते हैं। अतः माता-पिता से पूछकर वह भी उनके दर्शन-वन्दनार्थ गई। उनके श्रीमुख से प्रवचन सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुई। निर्ग्रन्थ प्रवचन पर श्रद्धा, प्रतीति आदि प्रकट की। प्रव्रज्या ग्रहण करने की भावना प्रकट की। माता-पिता के समक्ष अपना मनोरथ प्रकट किया। माता-पिता ने उसकी प्रबल इच्छा जानकर धूमधाम से पार्श्वनाथ प्रभु के समक्ष शिष्या भिक्षा दी। यह पुष्पचूला आर्या की शिष्या बनी।
दीक्षा लेने के पश्चात् भूता आर्या बार-बार हाथ, पैर, मुँह, सिर, स्तन, काँख आदि धोती थी। जहाँ भी वह बैठती, सोती, ध्यान करती, वहाँ पहले पानी छींटती थी। उसकी यह श्रमण धर्म विपरीत चर्या देखकर पुष्पचूला आर्या ने कहा-हम श्रमणियाँ हैं, हम पाँच समिति, तीन गुप्ति आदि की आराधक एवं गुप्त ब्रह्मचारिणी हैं। इस प्रकार
१. (क) देखें-पुफिया शब्द का विवेचन-अभिधान राजेन्द्र कोष भा. ४ पृ. २११०,
(ख) देखें-बहुपुत्तिया का जीवनवृत्त-अभिधान राजेन्द्र कोष भा. ५, पृ. १२९९ से १३०२ २. देखें-णिरयावलिका शब्द के अन्तर्गत पुष्पचूलिका का संक्षिप्त परिचय, अभिधान राजेन्द्र कोष
भा.४, पृ. २११०
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