Book Title: Karm Vignan Part 02
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 552
________________ ५३२ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) संचय कर लिया था, जिसके फलस्वरूप उन्हें सर्वार्थसिद्ध नाम के अनुत्तर विमान प्राप्त हुआ। सुनक्षत्र अनगार का वर्तमान और भविष्य दूसरा अध्ययन सुनक्षत्र का है। वह भी काकन्दी नगरी की भद्रा सार्थवाही का पुत्र था। उसका भी जन्म से लेकर दीक्षाग्रहण तक का वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिए। उसने भी धन्य अनगार की तरह तप के पारणे में यावज्जीव आचाम्लव्रत करने की प्रतिज्ञा की। अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहा। तप-संयम से आत्मा को भावित करते हुए ग्रामानुग्राम विचरण किया, ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। तप से शरीर कृश हो जाने पर आजीवन अनशन का संकल्प किया। यावज्जीव मासिक संल्लेखना अंगीकार की। दिवंगत हो जाने पर सुनक्षत्र अनगार भी सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए। वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होंगे। अनुत्तरीपपातिक के शेष आठ कथानायकों का संक्षिप्त परिचय शेष आठ अध्ययनों के कथानायकों का वर्णन भी सुनक्षत्र अनगार की तरह समझ लेना चाहिए। विशेष यह है कि इनमें से अनुक्रम दो का राजगृह में, दो का साकेत में, दो का वाणिज्यग्राम में नौवें का हस्तिनापुर में और दसवें का राजगृह में जन्म हुआ। इन नौ की ही माता भद्रा सार्थवाही थीं। नी का विवाहादि सब पूर्ववत् सम्पन्न हुआ। नौ का निष्क्रमण समारोह थावच्चापुत्र की तरह हुआ। वेहल्ल का निष्क्रमण उसके पिता ने किया। धन्य की दीक्षा पर्याय नौ मास की, वेहल्ल की ६ मास की और शेष कुमारों की बहुत वर्षों की रही। सबने अन्तिम समय में मासिक संल्लेखना की। सबका सर्वार्थसिद्ध में जन्म हुआ। सभी महाविदेह क्षेत्र से सिद्ध-बुद्ध और सर्व कर्म मुक्त होंगे। इस प्रकार अनुत्तरीपपातिक के तीनों वर्गों के वर्णन से स्पष्ट है कि स्वल्प कर्म और उनमें भी अत्यधिक पुण्यकर्म के फलस्वरूप सबको अनुत्तर विमान वाला सर्वोत्तम दिव्य लोक मिला, जहाँ से च्यवन के बाद मनुष्य जन्म निश्चित है और मुक्ति प्राप्ति भी अवश्यम्भावी है। तत्त्वार्थसूत्र में स्पष्ट कहा है-उच्चकोटि के देव गति, शरीर, परिग्रह, अभिमान आदि से अत्यन्त हीन (क्षीण) हो जाते हैं। कर्म भी बहुत थोड़े रह जाते हैं। १. देखें-अनुत्तरौपपातिक सूत्र में धन्य अनगार के तप से लेकर समाधिमरण तक का विस्तृत वर्णन (आ. प्र. समिति) पृ. २९ से ४३ २. देखें-वही, वर्ग ३ अ. २ में सुनक्षत्र का जीवनवृत्त पृ. ४६ से ४८ (आ. प्र. समिति ब्यावर) ३. देखें-वही, वर्ग ३ अ. ३ से १0 तक का संक्षिप्त वर्णन (आ. प्र. समिति, ब्यावर) पृ. ४९ से ५१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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