Book Title: Karm Vignan Part 02
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 551
________________ पुण्य-पाप के निमित्त से आत्मा का उत्थान-पतन ५३१ अनगार अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहे, तदनुसार आत्मा को दृढ़ और निश्चल बनाकर संयममार्ग में विचरण करते रहे।" धन्यकुमार अनगार का उत्कट तप: प्रशंसा और अभिनन्दन धन्य अनगार ने स्थविरों से सामायिकादि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और तप-संयम से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते रहे। पूर्वोक्त उदार, विपुल, कल्याणरूप, शिवरूप, धन्यरूप, मंगलरूप, श्रीसम्पन्न, उत्तम, उदात्त, उदग्र एवं महाप्रभावशाली तप के कारण धन्य - अनगार के शरीर के सभी अंगोपांग शुष्क, रूक्ष, कृश, दुर्बल और गमनागमन करने तथा खड़े होने और बैठने में अशक्त हो गए। किन्तु उनकी आत्मा अलौकिक बलिष्ठ हो गयी थी । राख के ढेर में दबी हुई अग्नि के समान वे तप से, तेज से अतीव देदीप्यमान एवं शोभायमान हो रहे थे । भगवान् महावीर ने अपने १४ हजार श्रमणों में धन्य अनगार को महादुष्करकारक और महानिर्जराकारक बताकर प्रशंसा की । श्रेणिक राजा ने जब यह सुना तो वे 'हृष्ट तुष्ट होकर धन्य अनगार के पास आए, उन्हें विधिवत् वन्दन- नमस्कार किया और ये उद्गार निकाले - "हे देवानुप्रिय ! आप धन्य हैं, आप पुण्यशाली हैं, आप कृतार्थ हैं, आप सुकृतलक्षण हैं, आपने मनुष्यजन्म और जीवन को सफल किया है।" धन्य अनगार द्वारा संल्लेखनापूर्वक समाधिमरण और मुक्ति एक दिन धन्य अनगार को मध्य रात्रि में धर्म जागरणा करते हुए इस प्रकार केभाव उत्पन्न हुए "मेरा शरीर इस प्रकार के उदार तपश्चरण से शुष्क, नीरस, दुर्बल, जीर्ण-शीर्ण एवं अशक्त हो गया है। अतः जब तक मेरे शरीर में उत्थान, कर्म, बल, , वीर्य और पराक्रम है, तब तक मैं भगवान् से अनुज्ञा प्राप्त कर अन्तिम संल्लेखना - संथारा अंगीकार करके समाधि में लीन रहूँ।” तत्पश्चात् भगवान् से अनुज्ञा प्राप्त करके स्थविरों के साथ विपुलगिरि पर पहुँचे, मासिक संल्लेखना पूर्वक समाधिमरण प्राप्त किया । दिवंगत होने पर वहाँ से वे ३३ सागरोपम की स्थिति वाले सर्वार्थसिद्ध विमान में देवरूप में उत्पन्न हुए। वहाँ से च्यवन कर वे धन्य देव महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धि मुक्तिं प्राप्त करेंगे। 'यद्यपि इतने उत्कृष्ट तपश्चरण और संयमाराधन से सर्वकर्मक्षय होकर मुक्ति होनी चाहिए, परन्तु यह अवश्य है कि इस प्रकार की उत्कृष्ट तप-संयम की आराधना से बहुत से कर्म क्षय हो गए थे, थोड़े से कर्म रह गए थे, उत्कृष्ट एवं प्रचुर पुण्यराशि का वही, वर्ग ३ में धन्य अनगार का संयमी जीवन वृत्त पृ. २२ 9. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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