Book Title: Karm Vignan Part 02
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 549
________________ पुण्य-पाप के निमित्त से आत्मा का उत्थान-पतन ५२९ चिल्लणा(चेलना) रानी के हैं और अभयकुमार नन्दारानी का पुत्र है। सबके पिता श्रेणिक नृप थे। आदि के पांच कुमारों का श्रामण्य-पर्याय १६-१६ वर्ष का है, बाद के तीन का १२ वर्ष का है, तथा दो का श्रामण्य पर्याय पांच-पांच वर्ष का है। आदि के ५ अनगारों का उपपात (जन्म) क्रमशः विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित, और सर्वार्थसिद्ध विमान में हुआ। दीर्घदन्त श्रमण सर्वार्थसिद्ध में उत्पन्न हुआ, शेष उत्क्रम से अपराजित आदि में, तथा अभय अनगार विजय विमान में उत्पन्न हुए। शेष वर्णन प्रथम अध्ययन के समान निष्कर्ष यह है कि इन सब ने रत्नत्रय की उत्कृष्ट साधना की, तपश्चरण भी किया, किन्तु सराग संयम होने से उत्कृष्ट पुण्यराशि संचित की, जिसके फलस्वरूप सबको पंच अनुत्तर विमान में से एक उत्कृष्ट विमान प्राप्त हुआ। द्वितीय वर्ग : तेरह अध्ययन : संक्षिप्त परिचय ____ द्वितीय वर्ग में १३ अध्ययन हैं, इनके पुण्यशाली कथानायक इस प्रकार हैं-(१) दीर्घसेन, (२) महासेन, (३) लष्टदन्त, (४) गूढ़दन्त, (५) शुद्धदन्त, (६) हल्ल, (७) द्रुम, (८) द्रुमसेन, (९) महाद्रुमसेन, (१०) सिंह, (११) सिंहसेन, (१२) महासिंहसेन, (१३) पुण्यसेन (पूर्णसेन)। दीर्घसेन आदि १३ ही पुण्यशाली कुमारों के पिता मगधसम्राट श्रेणिक नृप थे और माता धारिणीदेवी थी। तेरह ही तुमारों ने यौवन वय में भगवद्वाणी सुनकर संसार और भोगों से विरक्त होकर श्रमण-दीक्षा अंगीकार की। प्रथम अध्ययनवत् सबने शास्त्राध्ययन और तप-संयम का आराधन किया। तेरह ही कुमारों का दीक्षापर्याय १६ वर्ष का था। सबने अन्तिम समय में मासिक संल्लेखना-संथारा किया और समाधिपूर्वक देहत्यागकर अनुक्रम से आदि के दो विजय विमान में, दो वैजयन्त में, दो जयन्त में, दो अपराजित में और शेष पांच महाद्रुमसेन आदि सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए। तेरह ही पुण्यशाली महान् देव वहाँ से स्थिति पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेंगे और चारित्रपालन कर सर्वकर्मक्षय करके सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होंगे। तृतीय वर्ग : दस अध्ययन : संक्षिप्त नामोल्लेख तृतीय वर्ग में १० पुण्यशाली महान् आत्माओं के नाम से १० अध्ययन हैं-(१) धन्यकुमार, (२) सुनक्षत्र, (३) ऋषिदास, (४) पेल्लक, (५) रामपुत्र, (६) चन्द्रिक, (७) पृष्टिमातृक, (८) पेढालपुत्र, (९) पोटिल्ल और (१०) वेहल्ल। १. देखें-वही, विवेचन पृ. १०-११ २. देखें, अनुत्तरौपपातिक सूत्र वर्ग २ का विवरण (आ. प्र. समिति ब्यावर) पृ. १२-१३ ३. वही, तृतीय वर्ग पृ. १५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560