Book Title: Karm Vignan Part 02
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 548
________________ ५२८ कर्म-विज्ञान : भाग - २ : कर्मफल के विविध आयाम (५) अध्ययन हैं। इन ३३ अध्ययनों में ३३ महान् पुण्यशाली आत्माओं का वर्णन है। इनमें २३ पुण्यशाली राजकुमार तो मगधसम्राट् श्रेणिकनृप के पुत्र हैं। अनुत्तरौपपातिक कौन-कौन, क्यों और कैसे? सौधर्म आदि बारह देवलोकों से ऊपर नौ नवग्रैवेयक विमान आते हैं, और उनसे ऊपर पाँच अनुत्तर (सर्वोत्कृष्ट ) विमान आते हैं - ( १ ) विजय, (२) वैजयन्त, (३) जयन्त, (४) अपराजित और (५) सर्वार्थसिद्ध। जो साधक अपने उत्कृष्ट तप और संयम की साधना से इनमें उपपात (जन्म) पाते हैं, उन्हें 'अनुत्तरीपपातिक' कहते हैं। प्रथम वर्ग : दस अध्ययन इस शास्त्र के प्रथम वर्ग में दस अध्ययन इस प्रकार हैं- (१) जाली, (२) मयाली, (३) उपजाली, (४) पुरुषसेन, (५) वारिसेण, (६) दीर्घदन्त, (७) लष्टदन्त, (८) विहल्ल, (९) वेहायस और (१०) अभयकुमार । जालीकुमार द्वारा उपलब्ध पुण्यराशि का फल विजय विमान एवं सिद्धत्व प्राप्ति जालीकुमार श्रेणिक राजा का पुत्र और धारिणी रानी का अंगजात था । इसका जन्म होने पर खूब ठाठ-बाट से लालन-पालन हुआ । यौवनबय में ८ कन्याओं के साथ विवाह हुआ। प्रचुर सम्पत्ति और उत्तमोत्तम भोगों के पर्याप्त सुख-साधन होने से वे भोगसुखों में पूर्णतः डूबे हुए थे । किन्तु भगवान् महावीर का प्रवचन सुनते ही संसार से तथा भोगों से विरक्ति हुई। माता-पिता की अनुमति लेकर प्रव्रज्या अंगीकार की । स्थविरों के पास ग्यारह अंगशास्त्रों का अध्ययन किया । गुणरत्नसंवत्सर नामक तपश्चर्या की । अपना आयुष्य निकट जानकर अन्तिम समय में विपुलगिरि पर आमरण अनशन किया। सोलह वर्षों तक श्रामण्य-पर्याय का पालन किया। आयुष्य के अन्त में समाधिपूर्वक देह त्यागकर ऊर्ध्वगमन करके सौधर्म आदि १२ देवलोकों तथा नौ नवग्रैवेयक विमानों को लांघकर बत्तीस सागरोपम की स्थितिवाले विजय नामक अनुत्तरविमान में उत्पन्न हुए। वहाँ से आयुक्षय, भवक्षय और स्थितिक्षय करके जालीदेव महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य जन्म लेकर यावत् सिद्ध, बुद्ध और सर्वकर्मों-सर्वदुःखों से मुक्त होगा ।' शेष नौ अध्ययनों के कथानायकों का संक्षिप्त परिचय शेष नौ अध्ययनों के कथानायकों का जीवनवृत्त भी लगभग इसी प्रकार है। विशेषता यह है कि इनमें से सात पुत्र धारिणी रानी के हैं, वेहल्ल और वेहायस ये दो पुत्र १. देखें - अनुत्तरौपपातिक सूत्र में प्रथम वर्ग का सार्थ विवेचन (आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर) पृ.४ से १0 तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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