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५३0 कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) धन्यकुमार, उत्कृष्ट भोग से संयम-तपश्चरण योग में प्रवृत्त
धन्यकुमार काकन्दी नगरी की तेजस्वी, तथा ऋद्धि समृद्धि से सम्पन्न भद्रा सार्थवाही का पुत्र था। रूप, लावण्य तथा शुभ लक्षणों से सम्पन्न धन्यकुमार (धन्ना) को शुभमुहूर्त में कलाचार्य के पास ७२ कलाओं के अध्ययन के लिए भेजा। यौवन में पदार्पण करते ही भद्रा सार्थवाही ने धन्यकुमार का बत्तीस ईभ्यश्रेष्ठि प्रवरों की कन्याओं के साथ पाणिग्रहण कराया। इन बत्तीस कन्याओं के पिताओं ने बहुत-सा धन, धान्य, वस्त्राभूषण, विविध दासियाँ, तथा एक से एक बढ़कर पंचेन्द्रिय विषयसुखभोगों के साधन प्रदान किये।
एक बार तो ऐसा लगता था कि वे इन भोग-सुखों में डूब जाएँगे और अपने मानव जीवन के लक्ष्य को भूल जाएँगे। मगर भगवान् महावीर का प्रवचन सुनते ही धन्यकुमार की अन्तरात्मा जाग उठी। भगवान् के समक्ष संसार से विरक्ति और निर्ग्रन्थ बनने की उत्कण्ठा व्यक्त की। माता भद्रा से अनुज्ञा प्राप्त कर भगवान् के पास प्रव्रज्या अंगीकार करने की भावना भी प्रकट की।
यद्यपि माता भद्रा को अपनी बात समझाने-मनाने में धन्यकुमार को काफी श्रम उठाना पड़ा। अन्त में माता भद्रा ने स्वीकृति दे दी। जितशत्रु राजा ने स्वयं ही धन्य का दीक्षा-संस्कार (समारोह) किया। अनगार धन्यकुमार का संयमी जीवन .
दीक्षा लेते ही धन्य अनगार ने भगवान् से यह प्रतिज्ञा ली-“आज से मैं यावज्जीव बेले-बेले (छह-छह) पारणा करूंगा, पारणे में भी आयम्बिल तप करूंगा, वह पारणा भी संसृष्ट हाथों से ग्रहण करूँगा, असंसृष्ट हाथों से नहीं, तथा पारणे का आहार भी उज्झित धर्म वाला (फेंकने योग्य) ग्रहण करूँगा, उसमें भी वह भक्त-पान लूंगा, जिसे बहुत-से अन्य श्रमण, माहन, अतिथि, कृपण और भिखारी भी लेना न चाहें।"
इस प्रकार कठोर तप की प्रतिज्ञा लेकर पारणे के दिन तीसरे पहर में भगवान् से अनुज्ञा प्राप्त करके भिक्षा के लिए उच्च-नीच-मध्यम कुलों में अपनी प्रतिज्ञानुसार आहार पानी की गवेषणा करते हुए घूमते, किन्तु उनकी कठोर प्रतिज्ञानुसार कभी अन्न मिला तो पानी नहीं मिला, कभी पानी मिला तो अन्न नहीं। फिर भी वे प्रसन्नचित्त, अदीनमन, विषाद, कषाय आदि से रहित, अविश्रान्तयोगी (समाधियुक्त) रहते। अनासक्त भाव से समभावपूर्वक केवल संयम निर्वाहार्थ शरीररक्षण के उद्देश्य से आहार कर लेते थे। धन्य
१. देखें-अनुत्तरौपपातिक सूत्र वर्ग ३ में धन्यकुमार का पूर्वार्द्ध जीवनवृत्त पृ. १६ से २२
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