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कर्मों के विपाक : यहाँ भी और आगे भी ५०१
यहाँ से मरकर वह प्रथम नरक में नारकरूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ दीर्घकाल तक घोर यातनाएँ भोगकर राजगृह नगर में दोनों चाण्डालकुल में जन्मे । पुत्र का नाम रखा शकट कुमार और पुत्री का नाम रखा सुदर्शना ।
शकटकुमार पुनः बहन के साथ दुराचार सेवन के पापपूर्ण पथ पर
यौवन-अवस्था में युवक शकटकुमार यौवन, रूप एवं लावण्य से परिपूर्ण अपनी नवयौवना बहन सुदर्शना के रूप पर मोहित होकर उसके साथ ही अनाचार सेवन करने
लगा ।
शकटकुमार का भविष्य भी पापपूर्ण
शकटकुमार का भविष्य बताते हुए शास्त्रकार ने कहा - मनुष्यभव में यह शकटकुमार कूटग्राह (कपटपूर्वक जीवों को फंसाकर मारने वाला), महाअधर्मी और दुष्प्रत्यानन्द बनेगा। इस प्रकार घोर पापकर्मों का उपार्जन करके वह प्रथम नरक में नारकरूप में उत्पन्न होगा। वहाँ से निकल कर इक्काई, उज्झितक के समान शकटकुमार का जीव भी दीर्घकाल तक संसार - परिभ्रमण करेगा, यावत् वह पृथ्वीकाय आदि में लाखों बार उत्पन्न होगा।
लाखों भव करने के पश्चात् शकट का भविष्य उज्ज्वल होगा
तदनन्तर वहाँ से निकलकर वह वाराणसी में मत्स्य रूप से उत्पन्न होगा। एक दिन मत्स्यघातक उसका वध कर डालेंगे। मरकर वह उसी नगरी में एक श्रेष्ठिकुल में पुत्र रूप में उत्पन्न होगा। वहाँ सम्यग्दर्शन प्राप्त करके वह संसार विरक्त होकर अनगार बनेगा । चारित्र पालन के फलस्वरूप वह सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में देव होगा । वहाँ से च्यवकर वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा। वहाँ साधुधर्म का पालन करके समस्त कर्मों से मुक्त, सिद्ध बुद्ध होगा, सर्वदुःखों का अन्त करेगा।
यह है - शकटकुमार के जीवन में पूर्वजन्मकृत पापकर्मों के कटुफल का ज्वलन्त उदाहरण !
राज्यशान्ति के लिए अनेक बालकों के हृदय के मासपिण्ड को होमने वाला महेश्वरदत्त
इसके पश्चात पंचम अध्ययन बृहस्पतिदत्त का है। उसके पूर्वभव और बाद के भवों का जीवन भी पापपूर्ण रहा।
उसके पूर्वभव का वृत्तान्त इस प्रकार है- सर्वतोभद्र नामक समृद्ध नगर के राजा जितशत्रु का राज पुरोहित महेश्वरदत्त था । वह अत्यन्त क्रूरहृदय था । वह राज्य की शक्ति (बल) एवं वृद्धि के लिए प्रतिदिन क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र के एक-एक
१. देखें, विपाकसूत्र श्रु. १ अ. ४ में शकटकुमार का वृत्तान्त, पृ. ६२
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