Book Title: Karm Vignan Part 02
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 535
________________ कर्मों के विपाक : यहाँ भी और आगे भी ५१५ निद्राधीन देखकर चारों ओर देखा, और रसोईघर में आई। वहाँ पड़े हुए एक लोहे के डंडे को आग में अत्यन्त तपाकर लाल सुर्ख बने हुए उस डंडे को संडासी से पकड़कर जहाँ श्रीदेवी सोई थी, वहाँ ले आई। आते ही आव देखा न ताव उस तप्त लोहदण्ड को श्रीदेवी के गुदास्थान में घुसेड़ दिया। उसकी असह्य वेदना के कारण उच्च स्वर से कराहती और छटपटाती हुई श्रीदेवी ने वहीं दम तोड़ दिया। दासियों द्वारा पुष्यनन्दी को मातृ-हत्या का समाचार मिलते ही मूर्छित होकर गिर पड़ा श्रीदेवी की दासियाँ इस भयंकर चीत्कार को सुनकर वहाँ दौड़ी आईं और देवदत्ता देवी को वहाँ से निकलती देख सोचा-"हो न हो, यह इसी का काम है।" श्रीदेवी के पलंग के पास आकर देखा तो अवाक रह गईं। वह निश्चेष्ट एवं प्राणरहित होकर पड़ी थी। दासियाँ रोती कलपती राजा पुष्यनन्दी के पास आईं और सिसकते हुए निवेदन किया-"स्वामिन् ! महान अनर्थ हो गया! माताजी को देवदत्ता देवी ने अकाल में कालकवलित कर दिया।" - यह सुनते ही मातृशोक के कारण पुष्यनन्दी धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा और बेहोश हो गया। देवदत्ता को राजा पुष्यनन्दी द्वारा मृत्युदण्ड दिया गया - होश में आने पर अनेक मित्र राजाओं, सार्थवाहों यावत परिजनों के साथ रुदन, विलाप करते हुए उसने श्रीदेवी का बड़े ठाठबाट से दाह-संस्कार किया। तत्पश्चात् क्रोधाविष्ट होकर देवदत्ता देवी को राजपुरुषों द्वारा गिरफ्तार करवाया। फिर उसके नाक-कान कटवाये। अवकोटक बंधन से बंधवाया। गले में लाल फूलों की माला तथा वध्ययोग्य वस्त्र पहनाए। हाथों में हथकड़ियाँ पहनाई। यह स्त्री वध करने योग्य है, हत्यारी है', इस प्रकार उच्च स्वर से घोषणा करते हुए उसे वध्य स्थान पर ले जाया गया। वहाँ सैकड़ों नर-नारियों की उपस्थिति में उसे सूली पर चढ़ाया गया। इस प्रकार देवदत्ता को परलोक में तथा इहलोक में अपने द्वारा कृत पाप कर्मों का हाथों-हाथ फल मिल गया। . देवदत्ता का भविष्य : अधिकतर अन्धकारमय, अन्त में प्रकाशमय देवदत्ता के भविष्य के बारे में पूछने पर भगवान् ने कहा-देवदत्ता यहाँ से यथासमय मरकर प्रथम नरक में नारकरूप में उत्पन्न होगी। वहाँ से निकलकर मृगापुत्र की भाँति वनस्पतिकायिक जीवों के अन्तर्गत निम्ब आदि कटुवृक्षों तथा आक आदि कटुदुग्ध वाले पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी। वहाँ से निकलकर गंगपुर नगर में हंस रूप में पैदा होगी। बहेलियों (शाकुनिकों) द्वारा मार डाले जाने पर गंगपुर में ही वह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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