Book Title: Karm Vignan Part 02
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 532
________________ ५१२ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) श्यामादेवी को सिंहसेन नरेश द्वारा आश्वासन सिंहसेन राजा को जब इस बात का पता चला तो वह कोपभवन में श्यामादेवी के पास आया। वहाँ श्यामादेवी को निराश, चिन्तित, उदास एवं निस्तेज देखकर उससे चिन्ता और उदासी का कारण पूछा तो उसने अपनी ४९९ सौतों की माताओं द्वारा उसे मारने के षड्यंत्र का वृत्तान्त कहा। फिर कहा-न मालूम वे किस कुमौत से मुझे मारेंगी, यही मेरे आर्तध्यान का कारण है। सिंहसेन नृप ने उसे प्रिय, मनोज्ञ शब्दों से आश्वस्त और विश्वस्त किया। ____ तदनन्तर सिंहसेन ने अपने अनुचरों को बुलाकर नगर के बाहर पश्चिम दिशा में एक मनोहर, दर्शनीय महती कूटागारशाला बनवाने का आदेश दिया। अनुचरों ने कुछ ही दिनों में एक विशाल कूटागारशाला तैयार करवा दी। चार सौ निन्यानवें सासुओं को कूटागारशाला में निवास दिया फिर एक दिन सिंहसेन ने अपनी ४९९ रानियों की माताओं को आदरपूर्वक बुलाया। वे जब सिंहसेन के पास आईं तो उसने उन ४९९ सासुओं को सुखपूर्वक रहने के लिए नव-निर्मित कूटागारशाला में आदरपूर्वक स्थान दिया। उनके लिए सभी सुख-सुविधाएँ जुटा दी, नृत्य, गीत, वादन करने में निष्णात लोगों को वहाँ नियुक्त कर दिया। फिर उनके लिए स्वादिष्ट अशनादि तथा सुरा आदि सामग्री भी पहुँचा दी। इस प्रकार वे आश्वस्त एवं निश्चिंत होकर सरस स्वादिष्ट भोजन, मद्यपान एवं राग-रंग में मस्त होकर वहाँ जीवनयापन करने लगीं। कूटागारशाला के चारों ओर आग लगवाकर उन्हें मरवा दी एक दिन आधी रात के समय सिंहसेन राजा अनेक पुरुषों को लेकर कूटागारशाला में आया। फिर उसने उस शाला के सभी द्वार बन्द करवा दिये और चारों ओर से आग लगवा दी। फलतः उस आग की लपटों में झुलस कर वे ४९९ रानियों की माताएँ रुदन, क्रन्दन एवं विलाप करती हुई मर गईं। इस क्रूर कर्म के फलस्वरूप सिंहसेन छठी नरक में इस प्रकार के क्रूर कर्म वाला दुष्टबुद्धि राजा सिंहसेन ३४00 वर्ष जीकर उन घोर पापकर्मों के फलस्वरूप मरकर उत्कृष्ट २२ सागरोपम की स्थिति वाली छठी नरकभूमि में नारक रूप से उत्पन्न हुआ। सिंहसेन का जीव देवदत्ता के रूप में : दत्तसार्थवाह की पुत्री वहाँ से निकलकर वह रोहीतक नगर में दत्त सार्थवाह की धर्मपत्नी कृष्णश्री की कुक्षि से एक कोमलांगी सुन्दर कन्या के रूप में उत्पन्न हुआ। नाम रखा गया-देवदत्ता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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