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४९८ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) ग्रामवासियों की पुकार पर अभग्नसेन को विश्वास में लेकर जीवित पकड़ा और वधादेश दिया ___एक बार बहुत-से ग्रामों के विनाश से संतप्त ग्रामवासियों ने पुरिमताल नगर नरेश महाबल से सम्मिलित रूप से सविनय प्रार्थना की-“चोर सेनापति अभग्नसेन के द्वारा होते हुए ग्रामविनाश को बंद करवाकर हमें सुरक्षित करने की कृपा करें।" ___राजा ने क्रोधाविष्ट होकर अपने दण्डनायक को बुलाकर चोरपल्ली शालाटवी को नष्टभ्रष्ट करके चोर सेनापति अभग्नसेन को जीवित पकड़ लाने की आज्ञा दी। परन्तु दण्डनायक अपने दलबल सहित शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित होकर प्रस्थान करे, उससे पूर्व ही अपने गुप्तचरों द्वारा पता लगने से चोर सेनापति भी अपने चोर साथियों सहित शस्त्रास्त्र सुसज्जित होकर दुर्गम पथ वाले बीहड़ में छिप गया। उधर से दण्डनायक भी उसकी खोज करता हुआ, वहाँ आ पहुँचा। दोनों दलों में घमासान युद्ध हुआ। चोर सेनापति के वीर सैनिक इस प्रकार से लड़े कि दण्डनायक दल के छक्के छुड़ा दिये। उसके अनेक वीर हताहत हो गए। दण्डनायक को हतप्रभ कर दिया। दण्डनायक वहाँ से अपनी जान बचाकर भागा। पुरिमताल नरेश को अपनी हार की कथा सुनाई।
___महाबल नृप ने साम, दाम और भेदनीति अपनाई। चोर सेनापति को सामनीति से कूटाकारशाला में बुलवाया। उसका सत्कार सम्मान किया। उसे राजा के योग्य भेंट दी। खूब खिलाया-पिलाया। वह जब विश्वस्त हो गया तो एक दिन राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर अभग्नसेन को जीवित पकड़ लाने और भयंकर रूप से वध करने का आदेश दिया। बुरी तरह से प्रताड़ित करते हुए शूली पर चढ़ाया गया
___ राजाज्ञानुसार कौटुम्बिक पुरुषों ने नगर के सभी द्वारों को बंद करके चोर सेनापति अभग्नसेन को जीवित पकड़ कर नरेश के समक्ष उपस्थित किया। फिर उसके दोनों हाथ उलटे बांध दिये। और नगर के प्रत्येक चौराहे पर उसे चाबुक आदि के प्रहारों से प्रताड़ित करते हुए उसके शरीर से मांस काट काट कर उसे खिलाने और उसी का रुधिर निकालकर उसे पिलाने लगे। पहले चौराहे पर उसके चाचाओं को उसके आगे करके मारते हैं, दूसरे चौराहे पर चाचियों को उसके सामने करके, तीसरे चौराहे पर उसके ताउओं को, चौथे चौराहे पर उसकी ताइयों को, पांचवें चौराहे पर पुत्रों को, छठे चौराहे पर पुत्रवधुओं को, सातवें पर उसके दामादों को, आठवें पर उसकी पुत्रियों को, नौवें चौराहे पर पौत्रों व दौहित्रों को, दसवें पर पौत्रियों व दौहित्रियों को, ग्यारहवें पर
१. देखें, विपाकसूत्र शु. १ अ. ३ में अभग्नसेन का वृत्तान्त, पृ. ५२
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