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३४८ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५)
ये आठों ही कर्म फलदान की दृष्टि से आत्मा (जीव ) की अनुजीवी या प्रतिजीवी किन-किन शक्तियों को आवृत, कुण्ठित, विकृत और विलुप्त कर देते हैं, इसका संक्षेप में निरुपण इस प्रकार है
ज्ञानावरणीय कर्म-जीव (आत्मा) की ज्ञानशक्ति को आवृत करता है, इस कारण इसकी ज्ञानावरणीय संज्ञा है। इसके मुख्यतया पांच भेद हैं।
दर्शनावरणीय कर्म-जीव (आत्मा) की दर्शन (सामान्य, निराकार ज्ञान ) शक्ति को आवृत करता है, इस कारण इसकी दर्शनावरणीय संज्ञा है। इसके मुख्यतयां नी भेद
हैं।
वेदनीय कर्म - जीव को सुख और दुःख का वेदन ( अनुभव ) कराता है, इस कारण इसकी वेदनीय संज्ञा है। इसके मुख्यतया दो भेद हैं।
मोहनीय कर्म - यह जीव में राग-द्वेष-मोह को उत्पन्न कराता है। तथा उसकी सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र एवं सम्यक् तप की शक्ति को कुण्ठित, विलुप्त एवं विकृत कर देता है। इस कर्म के उदय से जीव मोहमूढ़ होकर यथार्थ रूप से वस्तु स्वरूप को जान नहीं पाता, मान नहीं पाता (उस पर श्रद्धा और रुचि नहीं कर पाता), तथा सम्यक् रूप से आचरण नहीं कर पाता अथवा आचरण शक्ति को यह कुण्ठित एवं विलुप्त कर देता है। इसी कारण इसकी मोहनीय संज्ञा है। इसके मुख्यतया दो भेद हैं-दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय । दर्शनमोहनीय के तीन और चारित्रमोहनीय के पच्चीस भेद हैं।
नामकर्म- - यह जीव के शरीर, वचन, मन की, तथा गति, जाति, इन्द्रिय आदि की प्रतिजीवी शक्ति को विविध अवस्थाओं में, अनेक विध शुभ-अशुभरूपों में नमा-झुका देता है। इस प्रकार की विचित्र शुभाशुभ अवस्थाओं के कारणभूत कर्म की नामकर्म संज्ञा है। इसके ९३ भेद हैं।
गोत्रकर्म-सदाचारियों या कदाचारियों की परम्परा में जन्म लेने, वैसा वातावरण मिलने अथवा स्वीकार करने का कारणभूत कर्म गोत्रकर्म है। जैन कर्मविज्ञान ज्ञातिकृत (कौम या वर्णकृत या आजीविकाकृत) उच्च नीच भेद को नहीं मानता। ये भेद गुणकृत या आचरणकृत माने जाते हैं। जो अच्छे आचार-विचार, एवं संस्कार वाले कुल या वंश की परम्परा में जन्म लेते हैं, शिष्ट आचार-विचार को धर्मयुक्त सुसंस्कृति का स्वीकार करके चलते हैं, ऐसे मनुष्यों की संगति को जीवन का उच्चतम कर्त्तव्य समझते हैं, और जीवन के संशोधन एवं सुसंस्करण में सहायक आचार-विचार का स्वीकार एवं क्रियान्वयन करते हैं, वे उच्चगोत्री कहलाते हैं और जो इनके विरुद्ध आचार-विचार वाले होते हैं, वे नीच गोत्री हो जाते हैं।
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