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विविध कर्मफल : विभिन्न नियमों से बंधे हुए ३८१
करता। अथवा कर्मफलनियमों का ज्ञाता होता तो वह उद्धत, निर्दय, कठोर एवं निर्मम होकर दूसरे प्राणियों के प्रति हिंसा, असत्य, ठगी, बेईमानी, अन्याय-अत्याचार, क्रूरता, बलि, हत्या, बलात्कार, संग्रहखोरी आदि का व्यवहार करके अशुभ (पाप) कर्म का बन्ध न करता।
वह यही सोचता कि मैं जो दूसरे प्राणियों के प्रति क्रूर और कठोर व्यवहार कर रहा हूँ, दूसरों को पीड़ा दे रहा हूँ, सता रहा हूँ, गुलाम बना कर उनसे मनमाना काम ले रहा हूँ, उन्हें डरा-धमका रहा हूँ, दूसरों को यातना दे रहा हूँ, क्या उन क्रूर पापकर्मों का फल मुझे नहीं भोगना पड़ेगा? दूसरों को पीड़ा, दुःख एवं यातना देकर, संतप्त और संत्रस्त करके क्या मैं अपने लिये ही दुःख के बीज नहीं बो रहा हूँ।
भगवान् महावीर ने आत्मौपम्य की भाषा में अध्यात्म-विकास के साधकों को यही उपदेश दिया था. “तू वही है, जिसे तू मारने योग्य जानता है; तू वही है, जिसे तू अपनी आज्ञा में रखने योग्य मानता है; तू वही है, जिसे तू परिताप देने योग्य मानता है; तू वही है, जिसे तू गुलाम बनाने के लिये पकड़ने योग्य मानता है; तू वही है जिसे तू डराना-धमकाना चाहता है ।. कर्मफल का प्रथम नियम : द्रव्य दृष्टि से
___ अतः कर्मफल का प्रथम नियम यह है-कृतकर्म के अनुरूप स्वयं को ही उसका फल भोगना पड़ता है। सूत्रकृतांगसूत्र में स्पष्ट कहा है-"जैसा किया हुआ कर्म, वैसा ही उसका फलभोग होता है।" “अतीत में जैसा भी कुछ कर्म किया गया है, भविष्य में वह उसी रूप में फल देने हेतु उपस्थित होता है।"२ । - द्रव्यदृष्टि से शुभ या अशुभ कर्म का फल वही भोगता है, जिसने वह कर्म किया है। एक के बदले दूसरा उस कर्म का फल नहीं भोग पाता। कर्मविज्ञान का यह सिद्धान्त है कि कर्मकर्ता ही उसका फलभोक्ता होता है, कर्म-बन्ध करने वाला ही उस कर्म के फल भोगने अथवा कर्म का क्षय (आंशिक निर्जरा), उपशम, क्षयोपशम अथवा संवर करने का अधिकारी है। एक के बांधे हुए या किये हुए कर्म का क्षय भी उसके बदले दूसरा नहीं कर सकता और न ही दूसरा संवर कर सकता है। दूसरा कर्मक्षय में, कर्मफल भोग में निमित्त बन सकता है।
१. तुमंसि नाम सच्चेव जं हंतव्वं ति मनसि, तुमंसि नाम सच्चेव, जं अज्जावेयव्वं ति मन्त्रसि, तुमसि
नाम सच्चेव जं परितावेयव्वं ति मनसि, तुमं सि नाम सच्चेव जं परिघेतव्वं ति मनसि, तुमसि नाम सच्चेव, जं उद्दवेयव्वं ति मनसि।"
-आचारांग १/५/५/ सू. १७० २.. सूत्रकृतांग १/५/१/२५, १/५/२/२३
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