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विविध कर्मफल : विभिन्न नियमों से बंधे हुए ४०९ अकाल में भी फल देना प्रारम्भ कर देते हैं। अतः कर्म यथाकाल और अयथाकाल रूप से फल प्रदान करते हैं।'
___ कर्म का उदय दो प्रकार से होता है प्राप्तकाल कर्मोदय एवं अप्राप्तकाल कर्मोदय। दीर्घकाल और तीव्र अनुभाग वाले कर्म तप आदि साधना द्वारा विफल बनाकर स्वल्प समय में ही भोग लिये जाते हैं, ऐसे कर्मों का उदय अप्राप्तकाल में हो जाता है। इसी प्रकार अपवर्तना से भी अप्राप्तकाल कर्मोदय होता है; उससे कर्मों की उदीरणा भी हो जाती है। सामान्यतया तो स्थितिबन्ध समाप्त होने पर स्वाभाविक रूप से कर्मोदय होता है, उसे प्राप्तकाल कर्मोदय कहते हैं।
- इस सम्बन्ध में एक नियम और समझ लेना चाहिए-एक ही समय में बंधे हुए समस्त कर्म एक ही समय में फल प्रदान नहीं करते, किन्तु जिस क्रम से उनका उदय होता है, उसी क्रम से ही वे फल प्रदान करते हैं। . भावों के निमित्त से शुभाशुभ कर्मफल या कर्मक्षय भी
कर्मविपाक में भाव भी एक निमित्त है। जब मनुष्य के मन में रागादि भावों की या कषाय-भावों की तीव्रता होती है तो कमों का विपाक अत्यधिक तीव्र और शीघ्र फलदायक होता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि मनोभाव व्यक्ति में सदा एक-से नहीं रहते, वे बदलते रहते हैं। __एक व्यक्ति को किसी संगीत को सुनकर कामोत्तेजना के भाव आते हैं, किसी को कामोत्तेजक दृश्य फिल्म में देखकर कामवासना के भाव उमड़ते हैं। किसी व्यक्ति को वेश्या या कुलटाओं के यहाँ शृंगार, सौन्दर्य एवं साजसज्जा का वातावरण देख कर कामवासना भड़क उठती है। इसी प्रकार किसी अवांछनीय व्यक्ति, प्रतिकूल परिस्थिति अथवा किसी स्थान विशेष के निमित्त से क्रोध भड़क उठता है। किसी क्षेत्र के निमित्त से भी आदमी के भाव बिगड़ जाते हैं, जबकि किसी क्षेत्र में जाते ही कषाय-भाव शान्त हो जाते हैं। मनुष्य का मूड बिगड़ने में काल भी एक निमित्त बनता है। सुबह-सुबह मूड कम बिगड़ता है, दोपहर में या गर्मी के समय में प्रायः शीघ्र ही मूड बिगड़ जाया करता है। एक समय ऐसा होता है, जब व्यक्ति का मूड (मनोभाव) अच्छा रहता है, जबकि दूसरे समय में उसी व्यक्ति का मूड ऑफ हो जाता है। एक व्यक्ति एक समय जो सरल सरस सज्जन
१. (क) ज्ञानार्णव ३५/२६-७,
(ख) तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिक २/५३/२
(ग) विपाक सूत्र-प्रस्तावना, (उपाचार्य देवेन्द्रमुनि) से पृ. ३२-३३ .२. जैनदर्शन और अनेकान्त से भावांश ग्रहण, पृ. १२३
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