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४२० कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५)
करके अर्जित जिस साधन, सुविधा, धन और वैभव से सुख-शान्ति नहीं, प्रसन्नता और प्रफुल्लता नहीं, उसका होना, न होना बराबर है, बल्कि असुखकारी सम्पत्ति की विद्यमानता भयंकर रूप से दुःखदायी बन जाती है। पाप अपने स्वभाव के अनुसार अपने आश्रयदाता को न केवल इसी जन्म में खाता रहता है, बल्कि जन्म-जन्मान्तर में साथ लगकर लोक-परलोक को बिगाड़ता रहता है। अतः पापकर्म मनुष्य को आदि, अन्त और वर्त्तमान तीनों कालों में दुःखी बनाता है। उसकी अन्तरात्मा उसे बार बार धिक्कारती और भर्त्सना करती है।
इसीलिए उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है - " पापकर्म कर्ता अपने ही कर्मों से पीड़ित होता है।'' इससे आगे बढ़कर स्पष्ट शब्दों में कहा गया है - जो आत्मा प्रदुष्टचित्त (राग-द्वेष से कलुषित) होकर कर्मों का संचय करता है, वे कर्म विपाक (फलभोग) में बहुत ही दुःखदायी होते हैं।'
'चाणक्यनीति' में स्पष्ट कहा है- "दरिद्रता, दुःख, रोग, बन्धन एवं विपत्तियाँये सब शरीरधारियों के अपने अपराध (पाप) रूपी वृक्ष के फल हैं।” क्योंकि-“पापकर्म के आचरण से व्याधि होती है, पाप कर्म से बुढ़ापा शीघ्र आता है, पापकर्म से दीनता-हीनता, भयंकर दुःख एवं शोक प्राप्त होते हैं।” मनुस्मृति में कहा है- “ दुराचारी पापात्मा व्यक्ति इस लोक में निन्दित, दुःखभाजन, रोगी और अल्पायु होता है।” “इसके विपरीत श्रेष्ठ आचरण करने वाला दीर्घजीवी होता है, वह श्रेष्ठ सन्तान और सुसम्पन्नता प्राप्त करता है। सदाचारी पुरुष दुराचारी को भी सुधार देता है।"
वास्तव में, शारीरिक मानसिक रोग, सन्तांप, दरिद्रता, दुर्घटना, मानसिक विक्षेप, अकाल मृत्यु, विपत्ति, संकट आदि अनेकों आकस्मिक विपदाओं के मूल कारण
9. (क) “सकम्मुणा किच्चइ पावकारी । "
२.
- उत्तराध्ययन ४ / ३
(ख) पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं ते पुणो होइ दुहं विवागे ॥
- उत्तराध्ययन ३२/४६
(ग) केवल अपने ही लिए न जीएँ (श्रीराम शर्मा आचार्य) से भावांश ग्रहण, पृ. ११२
(क) 'आत्माऽपराध वृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम् ।
- चाणक्यनीति
दारिद्र्य - दुःख - रोगानि बन्धन- व्यसनानि च ॥" (ख) पापेन जायते व्याधिः पापेन जायते जरा ।
"
पापेन जायते दैन्यं दुःखं शोको भयंकरः ॥ (ग) दुराचारो हि पुरुषो लोके भवति निन्दितः । दुःखभागी च सतते व्याधितोऽल्पायुरेव च ॥ भाचाराल्लभते ह्यायुराचारादीप्सिताः प्रजाः । आचाराद्धनमक्षय्यमाचारो हन्त्यलक्षणम् ॥
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- चाणक्यनीति
-मनुस्मृति
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