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पुण्य-पापकर्म का फल : एक अनुचिन्तन ४१७ जाता है, निर्बल भी सिंह सा बलिष्ठ हो जाता है; विकृत (बेडौल) शरीर भी कामदेव के समान सुन्दर सुडौल हो जाता है। इस जगत् में जो भी प्रशंसनीय अन्य सब दुर्लभ पदार्थ हैं, वे सब (पुण्यफलस्वरूप) पुण्योदय से प्राप्त हो जाते हैं।'' पुण्यफल भोगने के ४२ प्रकार
- इसके अतिरिक्त नवतत्त्व प्रकरण में पुण्य फल भोगने के ४२ प्रकार बताए हैं। अर्थात्-नौ प्रकार से बांधे हुए पुण्य, ४२ प्रकार से भोगे जाते हैं-(१) सातावेदनीय, (२) उच्चगोत्र, (३) मनुष्य गति, (४) मनुष्यानुपूर्वी, (५) देवगति, (६) देवानुपूर्वी, (७) पंचेन्द्रिय-जाति, (८) औदारिक शरीर, (९) वैक्रियशरीर (१०) आहारक शरीर, (११) तैजस शरीर (१२) कार्मण शरीर, (१३) औदारिक शरीर के अंगोपांग, (१४) वैक्रियशरीर के अंगोपांग, (१५) आहारक शरीर के अंगोपांग, (१६) वज्रऋषभ नाराचसंहनन, (१७) समचतुस्त्र संस्थान, (१८) शुभ वर्ण, (१९) शुभ गन्ध, (२०) शुभ रस, (२१) शुभ स्पर्श, (२२) अगुरुलघुत्व, (२३) पराघातनाम (दूसरों से पराजित न होना), (२४) उच्छ्वास नाम, (२५) आतपनाम, (२६) उद्योतनाम (तेजस्वी होना), (२७) शुभविहायोगति, (२८) शुभनिर्माणनाम, (२९) त्रसनाम, (३०) बादरनाम, (३१) पर्याप्तनाम, (३२) प्रत्येकनाम, (३३) स्थिरनाम, (३४) शुभनाम, (३५) सुभगनाम, (३६) सुस्वरनाम; (३७) आदेयनाम, (३८) यश कीर्तिनाम, (३९) देवायु, (४०) मनुष्यायु (४१) तिर्यञ्चायु और (४२) तीर्थकरनाग। पुण्यफल प्राप्त करने के मुख्यमोत नौ प्रकार के पुण्यकर्म
इस प्रकार अन्नपुण्य आदि नौ प्रकार के पुण्यकर्मों से उपर्युक्त ४२ प्रकार के पुण्यफल प्राप्त होते हैं, जिनका उपभोग पुण्यशाली व्यक्ति अनायास ही और कई-कई अनासक्त भाव से भी करते हैं।
१. (क) . “आयुः श्रीर्वपुरादिकं यदि भवेत् पुण्यं पुरोपार्जितम्।
स्यात् सर्वं भवेन्न तच्च नितरामायासितेऽप्यात्मनि ॥" -आगार धर्मामृत ३७ (ख) पुण्यं हि सम्मुखीनं चेत् सुखोपायशतेन किम् ?
न पुण्यं सम्मुखीनं चेत् सुखोपायशतेन किम्? -आगार धर्मामृत १/६०/४३६ (ग) कोऽप्यन्धोऽपि सुलोचनोऽपि जरसा ग्रस्तोऽपि लावण्यवान्।
निष्प्राणोऽपि हरिविरूपतनुरप्याद्युष्यते मन्मथः। उद्योगोज्झितचेष्टितोऽपि नितरामालिंग्यते च श्रिया। पुण्यादन्यदपि प्रशस्तमखिलं जायेत यदुर्घटम्॥
-प. वि. १/१८९ २. (क) देखें-अन्नपुण्णे आदि नौ प्रकार के पुण्यबन्ध के कारण, स्थानांग स्थान ९
(ख) नवतत्त्व प्रकरण गाथा १५-१६
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