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२१६ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५)
कर्म का कर्तृत्व भोक्तृत्व : एक शंका-समाधान
कर्म के कर्तृत्व-भोक्तृत्व के सम्बन्ध में निश्चयनय और व्यवहारनय की दृष्टि से पूर्वोक्त विवेचन को पढ़कर कई लोगों को दोनों नयों में विरोधाभास लगता है। परन्तु इन दोनों नयों में किसी प्रकार का विरोध नहीं है। दोनों नयों की विषयवस्तु और उनका क्षेत्र पृथक्-पृथक् है । निश्चयनय शुद्ध आत्मा और शुद्ध पुद्गल का ही कथन कर सकता है, पुद्गल मिश्रित आत्मा का या आत्म-मिश्रित पुद्गल का तथा कर्म के कर्तृत्व- भोक्तृत्व आदि का कथन निश्चयनय से किस प्रकार सम्भव है ? निश्चयनय तो पदार्थ के शुद्ध स्वरूप का अर्थात् जो पदार्थ स्वभाव से, अपने आप में जैसा है, वैसा ही प्रतिपादन करता है। कर्म का सम्बन्ध सांसारिक अशुद्ध (कर्म मिश्रित) आत्मा से हैं, इसलिए उसका ( कर्मयुक्त सांसारिक आत्मा का) कथन व्यवहारनय ही कर सकता है, क्योंकि परनिमित्त की अपेक्षा से वस्तु का निरूपण करना ही उसका काम है । अतः निश्चयनय से कर्म के कर्तृत्व-भोक्तृत्व आदि विषयों का निरूपण नहीं हो सकता। वह तो केवल शुद्ध, मुक्त आत्मा और पुद्गल आदि शुद्ध अजीव का ही निरूपण कर सकता है। जड़-चेतन मिश्रित संसारी कर्मबद्ध आत्मा से कर्म का सम्बन्ध है
कर्म के कर्तृत्व और भोक्तृत्व का सम्बन्ध संसारी आत्मा से - कर्मयुक्त आत्मा से है, मुक्त आत्मा से नहीं । संसारी आत्मा कर्मों से बद्ध है, उसमें चैतन्य और जड़ का मिश्रण है। मुक्त आत्मा कर्मों से सर्वथा रहित विशुद्ध चैतन्ययुक्त होता है। कर्मबद्ध आत्मा की मानसिक, वाचिक, कायिक प्रवृत्तियों के कारण जो कर्मप्रायोग्य पुद्गल-परमाणु आकृष्ट होकर परस्पर मिल जाते हैं, नीर-क्षीरवत् एक-से हो जाते हैं, वे कर्म कहलाते हैं। इस प्रकार कर्म भी जड़ और चेतन का मिश्रण है । संसारी आत्मा और कर्म दोनों जड़-चेतन मिश्रित हैं, दोनों में अन्तर यह है कि संसारावस्था में जड़ और चेतन अंश इस प्रकार के नहीं हैं कि उनका अलग-अलग रूप से अनुभव किया जा सके। फिर भी इन दोनों का पृथक्करण मुक्तावस्था में हो जाता है । संसारी आत्मा जब तक कर्मयुक्त है, तभी तक संसारी कहलाती है, कर्म से मुक्त होते ही वह मुक्त आत्मा कहलाती है। कर्म भी जब आत्मा से पृथक् हो जाता है, तब केवल पुद्गल कहलाता है। आत्मा से सम्बद्ध कर्म-पुद्गल द्रव्यकर्म है, और द्रव्यकर्म युक्त आत्मा की प्रवृत्ति-क्रिया भावकर्म है। अतः स्पष्ट है आत्मा और पुद्गल की मिश्रित अवस्था में ही कर्म के कर्तृत्व और भोक्तृत्व का सम्बन्ध है।
सत्य तथ्य यह है कि न तो संसारी जीव शुद्ध चेतनायुक्त है और न ही कर्म शुद्ध पुद्गल है । संसारी जीव चेतन-अचेतन दोनों द्रव्यों का मिला-जुला रूप है। इसी तरह कर्म
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