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३३0 कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५)
वस्तुतः इस संसार में कर्मफल से कोई बच नहीं सकता, चाहे वह कितना ही शक्तिशाली हो, सत्ताधीश हो, धनाधीश हो या धर्मधुरन्धर हो। पूर्वकृत कर्मों का फल कोई इस जन्म में तत्काल भुगतता है, और कोई देर से, कोई आज तो कोई दो दिन बाद,
और कोई सौ दिन बाद भुगतता है। संसार में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसने कर्म किया हो और उसे उसका फल भोगना न पड़ा हो। चौथा विकल्प : परलोक कृत कर्म का फलभोग परलोक में ही
चौथा विकल्प है-परलोक (पूर्वजन्म) में कर्म किया और उसका फलभोग भी परलोक में हो गया। यह विकल्प स्पष्ट है। इस चौभंगी से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कई बार कर्मफल भोगते समय समभाव न रखने से कृतकर्म का फल एक बार ही नहीं, सौ बार, हजार बार भी भोगना पड़ता है। जब व्यक्ति अत्यन्त आवेश, अहं और तीव्रता तथा क्रूरता के साथ कर्म करता है, उसका फल उसे अनेक बार भोगना पड़ता है। आचार्य रजनीश के एकान्त प्ररूपण का खण्डन
पूर्वोक्त विवेचन से आचार्य रजनीश आदि बुद्धिवादियों की इस एकान्त धारणा का भी निराकरण हो जाता है कि-"कर्म अभी करें और उसका फल भोगें अगले जन्म में, तथा पिछले जन्मों के अच्छे-बुरे कर्मों के द्वारा इस जीवन के सुख-दुःख की व्याख्या करना, कर्मवाद के सिद्धान्त को विकृत करना है।'' कर्मफल विषयक असंगति का निराकरण
इसी प्रकार मानवसमाज की वर्तमानकालिक अव्यवस्था या विषमता के लिए कर्मसिद्धान्त पर दोषारोपण करते हुए कतिपय लोग कहते हैं कि-"यह कर्मफल की असंगति है। कर्म सिद्धान्त केवल पूर्वजन्मकृत कर्म का फल कहकर प्रत्येक दुरवस्था या विषमता की समस्या का समाधान दे देता है; परन्तु वर्तमान में जिसने अशुभ नहीं किया हो, उसका उसे अशुभ फल मिले तथा वर्तमान में जिसने शुभ किया हो, उसका शुभफल न मिले, यह असंगति है।"
__वस्तुतः ऐसे लोग वर्तमान दृष्टि-परायण हैं, वे दूरदर्शी बनकर अतीत, अनागत एवं वर्तमान की त्रैकालिक कर्म-परम्परा की श्रृंखला को नहीं देख पाते। यदि वे इस त्रैकालिक कर्मपरम्परा की श्रृंखला को देख-सोच सकते तो सांसारिक जीव की जीवनयात्रा जो जन्म-जन्मान्तर से चली आ रही है, को समझकर जीवन का समग्र
१. देखें जिनवाणी कर्मसिद्धान्त विशेषांक में प्रकाशित लेख में कर्म विज्ञान पर आक्षेप पृ. २७४ २. वही, कर्मविज्ञान पर 'जैसी करणी, वैसी भरणी -पर एक टिप्पणी'-लेख में किया गया आक्षेप
पृ. २७२
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