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३३६ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) पापकर्म उसे हरदम कचोटता था। युद्ध में हारने के बाद वह अपनी जान बचाकर स्विटजरलैण्ड की तरफ भागा था। किन्तु वह भागने में सफल नहीं हुआ और कम्युनिस्ट सेनाओं द्वारा गोली से उड़ा दिया गया। उत्तराध्ययन सूत्र में ठीक ही कहा है-'धन से प्रमादी मनुष्य अपनी रक्षा नहीं कर पाता।” सामूहिक हत्याओं का कुफल हिटलर को भी मिला
इस शताब्दी में नृशंस सामूहिक हत्याओं के लिए हिटलर का नाम बड़ी घृणा और तिरस्कार के साथ लिया जाता है। उसने लाखों निरपराध व्यक्तियों को मौत के घाट उतरवा दिया। परन्तु वह भी जिंदगीभर चैन से नहीं बैठ सका। यहाँ तक कि अपनी छाया से, अपने पदचाप की प्रतिध्वनि से भी वह डरता रहा। उसे सुख से नींद नहीं आती थी। सशंक होकर बार-बार उठ बैठता था। ऐसे व्यक्ति जीवनभर अशान्त, उद्विग्न और आत्म प्रताड़ना से आन्दोलित रहते हैं। क्या यह उनके क्रूर कर्मों का फलभोग नहीं है ? इस जन्म के पापों का फल इसी जन्म में
अभी ता. २६ दिसम्बर ८९ की ताजी घटना है कि रूमानिया के अपदस्थ किये गए राष्ट्रपति निकोलाई चेसेस्कू और उसकी पत्नी एलेना को दोनों पर हजारों नागरिकों की हत्या कराने, एक अरब डालर से भी अधिक की सम्पत्ति देश से बाहर ले जाने तथा देशद्रोह करने के अपराध में गुप्त अदालती कार्यवाही करने के बाद फायरिंग स्क्वाड ने गोलियों से उड़ा दिया। तानाशाह चेसेस्कू और उसके परिवार के बैंक खातों पर भी पाबंदी लगा दी गई। उनके पुत्र एवं पुत्री को गिरफ्तार कर लिया गया। यह है-इस जन्म के कृत पापकर्मों का इसी जन्म में फलभोग का ज्वलन्त उदाहरण कृतकों के फलभोग में काल का अन्तर क्यों?
इसे जैन कर्मसिद्धान्त की भाषा में यों समझा जा सकता है-राग-द्वेष आदि अध्यवसायों के कारण जो कर्म-परमाणु आत्मा के साथ दुग्ध जलवत् घुल-मिल जाते हैं, एकीभूत-से हो जाते हैं, उन कर्म परमाणुओं में-जीव के तीव्र-मन्द भावों और परिणामों के अनुसार फलोत्पादन-शक्ति और फल देने की स्थिति (कालमर्यादा) का निर्माण हो जाता है। यदि कर्मबन्ध के समय जीव के परिणाम मन्द होंगे तो कर्मपरमाणुओं में
१. (क) वही, दिसम्बर १९७८ पृ. १८ (ख) वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते।
इमम्मि लोए अदुवा परत्था।" २. वही, दिसम्बर १९७८ पृ. १८ ३. रांची एक्सप्रेस (दैनिक) ता. २७/१२/८९
-उत्तराध्ययन सूत्र ४/५
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