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कर्म अपना फल कैसे देते हैं ? २६५
कर्मों की फलदान शक्ति में तारतम्य क्यों?
बीमार आदमी को डॉक्टर देखता है, उसे उसके रोग के अनुसार अमुक दवा या इंजेक्शन लिख देता है। चर्मरोग है तो वह विटामिन डी को लेने की सलाह देता है। विटामिन डी में चर्मरोग मिटाने की शक्ति है, किन्तु होम्योपैथिक डॉक्टर रोगी की प्रकृति, रोग की तीव्रता-मन्दता देखकर ही हाई या लो पोटेंसी (शक्ति) वाली गोलियाँ सेवन करने को कहता है। होम्योपैथिक दवाइयाँ ६, ३०, १00, २00, १000 से लेकर लाख पोटेंसी तक की होती हैं। उन दवाइयों की क्षमता के अनुसार वे रोग को मिटाने में समर्थ होती हैं। ___यही बात कर्मों की फलदानशक्ति के सम्बन्ध में है। यदि राग द्वेष तीव्र होता है तो कर्मपुद्गलों की फलदानशक्ति भी तीव्र हो जाती है, मन्द होता है तो फल देने की शक्ति भी मन्द होती है। जिस प्रकार दवाओं के सेवन के पश्चात् उसका मनचाहा परिणाम लाना डॉक्टर या रोगी के हाथ की बात नहीं; उसका परिणाम स्वतः निर्मित होता है। इसी प्रकार कर्म करने के बाद उसका मनचाहा या न्यूनाधिक फल पाना कर्ता के हाथ की बात नहीं, कर्म में स्वतः उद्भूत शक्ति से फल प्राप्त होता है। कर्मों की फलदानशक्ति कर्ता के रागादि परिणामों की तीव्रता-मन्दता पर आधारित है। कर्म को स्वयं अच्छे-बुरे या फलदान का ज्ञान नहीं होता, किन्तु जीव के रागद्वेषादि परिणाम के साथ स्वतः आकृष्ट होकर फल देने की उसमें शक्ति उद्भूत हो जाती है। मघ और दूध की तरह ज्ञानशून्य होने पर भी कर्म अपना प्रभाव दिखाता है ___ मद्य और दूध दोनों जड़ पदार्थ हैं। इन दोनों को अपने बुरे और अच्छे फल का कोई बोध नहीं होता, तथापि इन दोनों में बुरा और अच्छा प्रभाव डालने की क्षमता देखी जाती है। दूध ज्ञानहीन होते हुए भी सेवन किये जाने पर पेट में पहुँचता है एवं रसभाग और खल भाग के रूप में विभक्त होकर अलग-अलग रूप में परिणत हो जाता है। दूध को अपने माधुर्य, शक्तिवर्द्धकता एवं स्वास्थ्यपोषकता आदि सदगुणों का कोई बोध नहीं होता, फिर भी जब मनुष्य गाय, भैंस या बकरी आदि का दूध पीता है, तब वह पीने वाले के जीवन में अपनी विशेषताओं का प्रभाव दिखाता है। दुग्धपान करने से श्रान्त और क्लान्त व्यक्ति में नवजीवन का संचार होता है। क्षुधा से पीड़ित मनुष्य अथवा उपवास, बेला, तेला आदि तपस्या में रत मानव जब दूध से पारणा करता है, तो शरीर में स्फूर्ति, शक्ति, ताजगी और नवचेतना आ जाती है। दूध के सेवन से विद्यार्थी को बौद्धिक शक्ति मिलती है। दुधमुहे बालक को माता का दूध मिलते ही उसके उत्साह और बल में वृद्धि होती है।
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